सियासी अकबरनामा, भारतीयता पर निशाना ,CAA का विरोध उन्मादी गतिरोध

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

सियासी अकबरनामा, भारतीयता पर निशाना ,CAA का विरोध उन्मादी गतिरोध

इंजी०अनुराग पाण्डेय
कार्यवाहक संपादक
राजधानी न्यूज ,मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़

किसी देश में शरणार्थी के रूप में रहनेy की पीड़ा स्वतंत्रता के हनन की पीड़ा से कम नहीं होती है. शरणार्थी का जीवन सभ्यता, संस्कृति, धार्मिक स्वतंत्रता की आकांक्षा में मजबूरी में गुजरता है. भारत में शरणार्थियों को नागरिकता देने की आवाजें दशकों से उठ रही हैं लेकिन वोट की सियासत के कारण शरणार्थी देश के नागरिक नहीं बन पाए.

पहली बार बीजेपी ने चुनावी वायदा किया था कि पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक रूप से प्रताड़ित होकर भारत आए हिंदू,सिख,बौद्ध,ईसाई,जैन और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का कानून बनाया जाएगा. ऐसे लोगों के लिए नागरिकता संशोधन कानून (CAA) बनाया गया. संसद में इस विधेयक के पारित होने के बाद राजनीतिक विरोध का ऐसा उन्मादी अफसाना रचा गया कि इस कानून की अधिसूचना जारी होने में इतना लंबा समय लगा.

अब जबकि कानून का नोटिफिकेशन जारी हो चुका है तब फिर विरोध की आवाजें शुरू हो गई हैं. यह कानून धार्मिक रूप से प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने का है. इससे किसी भी समुदाय की नागरिकता छीनी नहीं जाएगी. इसके बावजूद ऐसा सियासी अकबरनामा लिखा जा रहा है कि मुसलमानों के साथ सरकार भेदभाव कर रही है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनके राज्य में नागरिकता संशोधन कानून लागू करने से इनकार कर रही हैं. केरल की कम्युनिस्ट सरकार भी इसे लागू करने से पीछे हट रही है. राजनीति का यह कैसा दौर है कि पीड़ित-प्रताड़ित मानवता के हक़ में बनाए गए कानून का भी विरोध किया जा रहा है. शाहीन बाग के आंदोलन की हकीकत एक बार फिर सियासी विरोध के रूप में सामने आ रही है.

CAA कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? भारत का विभाजन धर्म के आधार पर भारत पाकिस्तान के रूप में हुआ था. इस विभाजन के कारण दोनों देशों में रह रहे लोग अपनी सुविधा से एक दूसरे देशों में चले गए. विभाजन के समय भारत में बचे मुसलमान तो बराबरी और बेहतरी के साथ जीवन गुजार रहे हैं लेकिन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय और अनाचार के कारण बड़ी संख्या में लोग जीवन रक्षा के लिए भारत में आकर शरणार्थी बन गए. ऐसे सारे लोग अब तक शरणार्थी के रूप में ही जीवन गुजार रहे हैं. इन शरणार्थियों में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो आजादी के समय ही पाकिस्तान से भारत आए थे लेकिन उन्हें आज भी नागरिकता नहीं मिल सकी है.

तुष्टिकरण की राजनीति कानून के लक्ष्य और उद्देश्यों को भी भ्रमित कर रही है. यह कहा जा रहा है कि मुसलमानों को इसमें शामिल नहीं करके उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है. मुसलमानों के देश पाकिस्तान में भी मुसलमान के साथ अगर भेदभाव किया जा रहा है और वह शरणार्थी बनकर हिंदुस्तान में आकर रह रहे हैं तो क्या फिर भारत में नए पाकिस्तान के निर्माण के लिए ऐसे लोगों को नागरिकता देने की कोई आवश्यकता है? वोट की राजनीति में थोकबंद वोटो के लिए कई राज्यों में ऐसे लोगों को बसाया गया है जो भारत की नागरिकता की पात्रता नहीं रखते हैं लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे लोगों को देश की अस्मिता के ऊपर प्राथमिकता दी जा रही है.

भाजपा जहां यह दावा कर रही है कि उसने अपना एक और बड़ा वायदा पूरा कर दिया है वहीं मोदी विरोधी राजनीति करने वाले राजनीतिक दल इसे बड़ा चुनावी दांव बता रहे हैं. कांग्रेस तो कानून के नोटिफिकेशन की टाइमिंग को लेकर सवाल उठा रही है. यह आरोप लगाया जा रहा है कि बीजेपी इसके जरिए ध्रुवीकरण कर रही है. दशकों से शरणार्थी के रूप में रह रहे लोगों को जब राजनीतिक ध्रुवीकरण के कारण दरकिनार किया गया था तभी यह समझ लेना था कि कभी ना कभी इनका भी वक्त आएगा.

आज धार्मिक रूप से दूसरे देशों में प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों का भारत में वक्त आया है. जो राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों की राजनीति करते हैं वे भी इसका विरोध कर रहे हैं. राजनीतिक रूप से सबसे बड़ी आबादी मुसलमानों की है इसलिए अल्पसंख्यक राजनीति में मुसलमान ही सबसे ज्यादा प्रभावशाली माने जाते हैं. CAA कानून में हिंदू शरणार्थियों के अलावा जैन, बौद्ध, सिख पारसी और ईसाई भी शामिल हैं. इन सभी समुदाय के लोगों को इस कानून के अंतर्गत नागरिकता मिलेगी.

मुस्लिम राजनीति पर निर्भर राजनीतिक दल इन अल्पसंख्यकों को भी एक तरह से नागरिकता देने का विरोध कर रहे हैं. CAA के साथ केंद्र सरकार ने NRC कानून भी बनाया है लेकिन इसे भी अभी लागू नहीं किया जा सका है. भारत दुनिया का अकेला एक ऐसा देश है जिसका अपना कोई नागरिकता रजिस्टर नहीं है. यहां की राजनीति देश के ऊपर वोट की राजनीति को प्राथमिकता देती है.

वोट की राजनीति देश के कई राज्यों में जनसंख्या के संतुलन को प्रभावित कर रही है. पीएम मोदी और बीजेपी की राजनीति हिंदुत्व के संतुष्टीकरण पर आगे बढ़ रही है तो कांग्रेस और विपक्ष की राजनीति का केंद्र मुस्लिम तुष्टिकरण बना हुआ है. जनसंख्या के संतुलन और विदेश से आई असंतुलित और अनावश्यक बसाहट के कारण भारतीयता के संतुलन को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है.

देश के कई राज्यों में अल्पसंख्यक राजनीति ऐसे दौर में पहुंच गई है कि राजनीतिक जय-पराजय का आधार ही मुस्लिम राजनीति बन गई है. पश्चिम बंगाल में तुष्टिकरण की विषमता हिंदुत्व की धार को गति दे रही है. CAA कानून लागू होने से हिंदुत्व के ध्रुवीकरण को गति मिलने की पूरी संभावना है. इस तरीके का ध्रुवीकरण बीजेपी और एनडीए को लाभ पहुंचा सकता है.

सवाल राजनीतिक लाभ या नुकसान का नहीं है. सवाल राष्ट्र की अस्मिता और शरणार्थियों की गरिमा और सम्मान का है. दूसरे देश के नागरिकों को बिना पात्रता के नागरिकता कैसे दी जा सकती है? मुस्लिम देश पाकिस्तान से आये मुसलमानों को प्रताड़ित होकर आए मानना नासमझी होगी. पाकिस्तान तो मुसलमानों का ही देश है. CAA कानून उन देशों में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने की सुविधा के लिए बनाया गया है. इसका राजनीतिक विरोध जहां देश में विभाजन की राजनीति को बढ़ाएगा वहीं ध्रुवीकरण की गति को भी तेज करेगा.

भारत के मन की आवाज ना तो राजनीति तक पहुंच रही है और ना ही सुनाई पड़ रही है. राजनीति बहरी हो गई है. राजनीति के पास तो अंधी महत्वाकांक्षा है. एक अंधी पदलोलुपता है. अहंकार को तृप्त करने की एक लिप्सा है. वोट की राजनीति ऐसी ही महत्वाकांक्षा और पदलोलुपता के कारण तुष्टिकरण-ध्रुवीकरण और विभाजन को प्रोत्साहित कर रही है. राजनीति मानवता से ऊपर नहीं हो सकती. अब तो राजनीति मनुष्यता को ही दूषित कर रही है. CAA कानून मानवीयता का कानून है. देश ऐसी राजनीति और राजनीतिज्ञों की तलाश में है जिनका लक्ष्य हो ‘मेरी जिंदगी किसी के काम आ जाए, कौन जाने कब मौत का पैगाम आ जाए’.

Leave a Comment

[democracy id="1"]