मध्यकाल में यहाँ से आगरा से दक्षिण भारत का रास्ता गुजरता था, इसलिए महत्वपूर्ण था पिछोर का किला
– किले के बाहर कई मंदिर हैं, जो आस्था का केंद्र
शिवपुरी। रंजीत गुप्ता। शिवपुरी जिला मुख्यालय से 76 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पिछोर कभी चंपा नगरी कहलाता था यहां के पहाड़ पर किला स्थापित किया गया था। राज्य शासन ने पिछोर के किले के क्षेत्र में एक संग्रहालय भी बनाया है। इस संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1977 में की गई थी।
शिवपुरी जिले की पिछोर तहसील पूर्वोत्तर 76 किमी, झांसी से दक्षिण पश्चिम में 64 किमी एवं करैरा के दक्षिण में 42 किमी दूर स्थित है। मध्यकाल में यहाँ से आगरा से दक्षिण भारत का रास्ता गुजरता था। इस रास्ते की निगरानी के लिए पिछोर को महत्वपूर्ण मानते हुए ओरक्षा नरेश ने इसे जागीर मुकाम कायम कर गढ़ी नुमा छोटा सा किला स्थापित कर दिया था।
यहाँ का किला पिछोर बस्ती के पश्चिम दिशा में पहाड़ी पर स्थित है। किला पहाड़ी के पश्चिम भाग में मोती सागर तालाब निर्मित है। किला आयताकार है। शिखर पर निर्मित किला प्राँगण एवं महल के कुछ नीचे 25-30 फुट ऊँचा परकोटा है।
किले का मुख्य दरवाजा पूरब में परकोटे की मध्य के गुर्ज से सटकर निर्मित है। दूसरा दरवाजा उत्तराभिमुखी है जो तालाब के बांध की ओर खुलता है। किले के उत्तरी भाग में राजमहल आदि तथा दक्षिण में सैनिकों, कामदार,कर्मचारियों के कक्ष भग्नावस्था में है।किले तालाब बाबड़ी आदि पेयजल आपूर्ति के लिए बनी हुई है।
किले के बाहर कई मंदिर हैं-
किले के बाहर उत्तर में तालाब के बांध पर नरसिंह मंदिर, रसिक बिहारी , रणछोड़ तथा हनुमान मंदिर आदि बने है। ये मंदिर 16 वी सदी के है तथा इन पर ओरछा के मंदिर वास्तु का प्रभाव है।
1675 ईस्वी में इस क्षेत्र पर बुंदेला शासक राजवीर वृषभदेव सिंह का राज्य था। वर्तमान किले के उत्तरी पश्चिमी भाग का निर्माण भी राजवीर बुंदेला ने कराया था। बुंदेलों का इस क्षेत्र पर लंबे समय तक शासन रहा, बाद में जाट राजाओं ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
16-17वीं शताब्दी में एक गढ़ी का निर्माण कराया –
जाट राजाओं ने पिछोर में भी 16-17वीं शताब्दी में एक गढ़ी का निर्माण कराया । उक्त गढ़ी में ही पिछोर संग्रहालय स्थापित है। संग्रहालय में आसपास के क्षेत्र से एकत्रित प्रतिमाओं को संग्रहित कर प्रदर्शित किया गया है। इन प्रतिमाओं में जैन धर्म एवं सूर्य प्रतिमाएं शामिल हैं। संग्रहालय में दरबार हॉल एवं प्रांगण में प्रतिमाओं को प्रदर्शित किया गया है। यहां 90 से अधिक प्रतिमाएं आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। जाट राजाओं ने यहां अनेक किले व गढ़ियों का निर्माण कराया था। पिछोर के किले में भी जाटों ने महल एवं बावड़ी का निर्माण कराया, जिसका उपयोग वर्ष 1847 तक किया जाता रहा।1852 ईस्वी में यह क्षेत्र सिंधिया सरदार दिनकर राव के प्रभाव में था।