अनूपपुर में अमृतकाल – अमृत ही अमृत है भैया!

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कहो तो कह दूं
पं अजय मिश्र
जिला अनूपपुर में इन दिनों “अमृतकाल” चल रहा है। चारों तरफ अमृत ही अमृत बरस रहा है। बस, फर्क इतना है कि यह अमृत किसी को दिखता नहीं। जनता पूछ रही है, “भैया, ये अमृत कहाँ है?” तो जवाब मिलता है – “अरे! हवा में घुला है, महसूस करो!”
जिले में सड़कें खुदी पड़ी हैं, गड्ढे अमृत-झील का रूप लिए हुए हैं। हर मोड़ पर लिखा है – ‘स्मार्ट सिटी में आपका स्वागत है।’ लोग पूछते हैं, “सड़क कब बनेगी?” तो अफसर कहते हैं – “अमृतकाल खत्म होते ही…।”
नल जल योजना के नल हैं, पर पानी कहीं और जा रहा है। लोग बाल्टी लेकर घूमते हैं, मानो अमृत ढूँढ रहे हों। बिजली आती-जाती है, पर बिल हमेशा समय पर आता है। जनता को समझाया जा रहा है – “अमृतकाल में धैर्य ही असली अमृत है।”इस अमृत काल में ज्योति भी पांच हजार लेकर एक हजार की बिजली दे रही है सबसे ज्यादा अमृत तो संविदा वाले शुक्ला जी पी रहे हैं
नेता जी हर तीसरे दिन अमृतकाल की महिमा गाते हैं। कहते हैं – “जिला बदल रहा है!” जनता हाँ में हाँ मिलाती है, सोचते हुए – “सच में बदल रहा है… जेब का वजन कम हो रहा है, धैर्य का बोझ बढ़ रहा है!”
अमृतकाल की सबसे बड़ी खूबी ये है कि हर चीज़ भविष्य में पूरी होगी। उद्योग लगेंगे रोजगार मिलेगा पार्क बनेंगे, लाइटें जगमगाएँगी, सड़कें सपाट होंगी… पर सब अगले अमृतकाल में!
फिलहाल अनूपपुर में अमृतकाल का स्वाद सब चख रहे हैं। फर्क बस इतना है – कुछ के लिए ये स्वाद शहद जैसा है, और ज़्यादातर के लिए कुनैन जैसा कड़वा।
जय हो अमृतकाल की!