अनूपपुर ।संतो का वचन है कि हर किसी के जीवन में 10 वर्ष की विशेष दशा आती है। इन दस वर्षों में अगर आप सत्य के आश्रय में चाहे तो अपना जीवन सुधार सकते हैं और चाहें तो असत्य के आश्रम में जाकर अपना जीवन बिगाड़ सकते हैं।
उक्त बातें अनूपपुर (मध्य प्रदेश) के अमरकंटक रोड स्थित कथा पंडाल में श्री राम कथा का गायन करते हुए तृतीय दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।
सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेममूर्ति पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री राम सेवा समिति के पावन संकल्प से आयोजित नौ दिवसीय रामकथा गायन के क्रम प्रभु श्रीराम के प्राकट्य का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान में विश्वास रखने वाले सत्य के आश्रय में अपनी दशा को 10 वर्ष में संभाल कर पूरा जीवन सुख पूर्वक व्यतीत करते हैं। सत्य के अन्वेषण में लगा व्यक्ति सत्य की ओर बढ़ता बढ़ता चला जाता है और झूठ उससे दूर चला जाता है। यह प्रमाणित है कि असत्य (झूठ) का कोई अस्तित्व नहीं होता है। थोड़े से लाभ के लिए भी असत्य का आश्रय लेने वाले को गड्ढे में पहुंचना ही होता है।
महाराज श्री ने कहा कि संसार में भगवान कुछ भी नहीं करते हैं । प्रकृति की व्यवस्था ही सब कुछ करती है। हमारे चित्त की गति जैसी होती है हमारी मैत्री भी वैसे ही लोगों से होती है। सत्संगी को सत्संगी का संगत अच्छा लगता है और कुसंगी को अपने जैसे लोगों का ही साथ अच्छा लगता है। अगर भगवान की ओर बढ़ना है तो पहले उनको मानना आवश्यक है। भगवान को मानने वाला ही भगवान को जान पाता है। मानना स्वयं पड़ता है , कोई हमें समझा नहीं सकता है , मनवा नहीं सकता है।
पूज्य श्री ने कहा कि भगवान से हमें यह प्रार्थना करना चाहिए कि परिवार में थोड़ी कमी बने रहे जिससे हमें आपकी याद आती रहेगी। यह सत्य है कि भगवान राम सर्व समर्थ हैं लेकिन आज के युग में यह सोचना कि सब राम जी ही कर देंगे, पूरी तरह से गलत है। प्रयास और परिश्रम तो स्वयं ही करना पड़ता है
पूज्य श्री ने कहा कि अखाद्य पदार्थ और मदिरा दोनों मनुष्य को पाप के मार्ग पर ले जाते हैं। ऐसे लाखों उदाहरण भरे पड़े हैं कि जिन सनातन परिवारों में मांस और मदिरा का सेवन शुरू हुआ उनके कुल में केवल उत्पाती लोगों का ही आगमन हुआ।
सनातन परिवार के लोगों से मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि इन अखाद्य वस्तुओं से अपने परिवार को बचाने के लिए संकल्पित हों। जिसके जीवन में जितना अधिक सदाचार होगा, उसकी परमात्मा के चरणों में उतनी ही प्रीति होगी। अपने जीवन का, अपने आय का दसवां भाग परमार्थ में लगाने वाले का न केवल यह जन्म सुधार जाता है बल्कि आने वाला जन्म भी सुंदर होता है।
पूज्य श्री ने कहा कि अपना भविष्य नहीं जानने में ही मनुष्य की भलाई है। मनुष्य के जीवन में सुख और दुख दोनों का ही आना-जाना लगा रहता है। ईश्वर की बनाई हुई व्यवस्था में यह एक बहुत ही अच्छी बात है कि मनुष्य अपने आने वाले कल के बारे में नहीं जानता है। यदि उसे अपने कल के बारे में आज ही पता चल जाए तो वह सर्वदा दुखी ही रहेगा।
इस संसार में कुछ भी अनिश्चित नहीं है। सब कुछ निश्चित है। भगवान की व्यवस्था है और वह संसार की भलाई के लिए ही है। धरती पर आने वाले मनुष्य का जाना भी तय है। और फिर नए स्वरूप में आना भी तय है। शरीर छोड़ने के बाद जीवात्मा को 12 दिनों में अपने स्वरूप की प्राप्ति हो जाती है, ऐसा गरुड़ पुराण में कहा गया है।
महाराज जी ने कहा कि भगवान के बनाये हुए संसार में घटनाओं का घटित होना एक निर्धारित और निश्चित सत्य है। हर मनुष्य अपने चित्त की स्थिति के अनुसार उन घटनाओं को स्वीकार करता है। हर व्यक्ति के चित्त की स्थिति सामान नहीं होती है। मनुष्य के आहार विहार और व्यवहार ही उसके मां को नियंत्रित करते हैं और उसी के अनुसार चित्त की गति भी होती है।
हम जिस युग में जी रहे हैं वहां हर मनुष्य विकारों से दूर नहीं रह पाता है। कामनाओं के मैल मन में तरह-तरह के विकार पैदा करते रहते हैं और इससे मनुष्य का जीवन कष्टमय हो जाता है।
अगर हम सहज रहना चाहते हैं और सहज जीना चाहते हैं तो हमारे पास इस कलियुग के मल को काटने और धोने का एकमात्र साधन है श्री राम कथा। काम, क्रोध,लोभ, मद और मत्सर आदि विकार कलिमल कहे जाते हैं। इससे बचने का एकमात्र सहज साधन श्री राम कथा ही है। मानस जी में लिखा है इस कथा को जो सुनेगा, कहेगा और गाएगा वह सब प्रकार के सुखों को प्राप्त करते हुए अंत में प्रभु श्री राम के धाम को भी जा सकता है।
पूज्यश्री ने कहा कि जब मन पर कलिमल का प्रभाव हो तो
चाह कर भी मनुष्य सत्कर्म के पथ पर आगे नहीं बढ़ पाता है। मनुष्य का मन और उसके बुद्धि उसके अपने कर्मों के अधीन है। हम जो भी कम करते हैं उसे हमारा क्रियमाण बनता है। यही कर्म फल एकत्र होकर संचित कर्म होता है और फिर कई जन्मों के लिए यह प्रारूप प्रारब्ध के रूप में जीव के साथ जुड़ जाता है। सत्कर्मों से जिसने भी अपने प्रारब्ध को बेहतर बना रखा है, इस जन्म में भी सत्कर्मों में उसी की गति बन पाती है । अन्यथा बार-बार विचार करने के बाद भी हम उस पथ पर अपने को आगे नहीं ले जा पाते हैं।
जीवन में सुख और शांति की अपेक्षा है तो घर में सत्संग का वातावरण बनाया जाय। घर में सत्संग का वातावरण होगा तो अगली पीढ़ी के बच्चों में वह अवतरित होगा। बच्चे कुसंगति को बहुत जल्दी अंगीकार करते हैं। अगर उन्हें कल कुसंगति से बचाना है तो उन्हें निरंतर सत्संग में गति करानी होगी।
भारत की भूमि देवभूमि है धर्म की भूमि है यहां धर्म का पालन करने वाले ही सदा सुखी रहते हैं और अधर्म पथ पर चलने वाले लोगों को दुख भोगने पड़ते हैं। पूज्य महाराज जी ने कहा कि मनुष्य अपने जीवन में अपनी संपत्ति का उत्तराधिकारी तो तय कर देता है, लेकिन उसने जो परमार्थ कार्य किया है, उसे भी आगे बढ़ाने की कोई व्यवस्था नहीं सोचता है।
महाराज श्री ने कहा कि भगवान की जीव भाव से सेवा करें। उन्हें छोटी सी कटोरी में भोग नहीं लगाएं। इसमें हमारी श्रद्धा का दर्शन होता है। कई लोगों को सांसारिक सामग्री पर तो भरोसा होता लेकिन लोग भगवान पर भरोसा नहीं करते। भगवान के भक्त को कोई कष्ट नहीं होता, बस वह भगवान पर भरोसा रखे और स्मरण करते रहे। लोग चाहते हैं कि भगवान मेरा बन जाएं लेकिन उलझे हुए हैं जगत के संबंधों को साधने में। सांसारिक ऐश्वर्य यहीं रह जाने वाला है साथ केवल भजन, सत्कर्म, यज्ञ एवं पुण्य ही जाएंगे और कुछ साथ नहीं जाने वाला।
हमारी संस्कृति धर्म पर आधारित है जैसे तैसे नहीं चलती है। धर्म और परंपराओं का सब विधि से पालन होना चाहिए और तभी समाज का कल्याण संभव है।
महाराजश्री ने कहा कि मनुष्य अपने परिवार के लोगों के लिए ही जीवन में गलत कार्य करता है धन उपार्जन करने के लिए। लेकिन उसे यह सोचने की आवश्यकता होती है कि कोई दूसरा इसके फल में उसका साथ देने वाला नहीं है फल तो उसको स्वयं अकेले ही खाना पड़ता है।
बेईमानी का संग्रह टिकता नहीं है और ना ही उससे जीवन में कोई सुखी हो पाता है। अगर मनुष्य को जीवन में सुख चाहिए तो वह उसे सिर्फ अपने सत्कर्म से ही प्राप्त हो सकता है अपने परिश्रम से अर्जित धन से जो व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करता है वही सुखी रह पाता है।
महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। बड़ी संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी, भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए। इस आयोजन से जुड़ी समिति के सदस्यों ने व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।
जीवन काल में 10 वर्ष का समय अपने को संभालने के लिए मिलता है – पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज
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