दीपावली पर सुआ रीना नृत्य की छटा
अमरकंटक। श्रवण उपाध्याय। मां नर्मदा उद्गम स्थली पवित्र नगरी अमरकंटक जो पतित पावनी मां नर्मदा की उद्गम स्थली के रूप में प्रतिष्ठित है , यहां दीपावली के पावन अवसर पर पारंपरिक लोक संस्कृति की अनुपम झलक देखने को मिली । उद्गम स्थल परिसर के सामने ग्रामीण अंचल की महिलाओं ने पारंपरिक सुआ रीना गायन एवं नृत्य के माध्यम से त्योहार की खुशियाँ अपने विशेष अंदाज़ में मनाईं ।
महिलाओं ने पारंपरिक परिधानों में सुसज्जित होकर , सिर पर मिट्टी से बनी सुआ (तोता) की मूर्ति के साथ गीत गाए और लयबद्ध नृत्य प्रस्तुत किया । इस नजारे को देखकर वहां उपस्थित पर्यटक और तीर्थ यात्री भावविभोर हो उठे । भारी संख्या में लोगों ने इस जीवंत प्रदर्शन को देखा और सराहा ।
इस अवसर पर उपस्थित महिलाओं ने बताया कि सुआ रीना नृत्य केवल एक पारंपरिक प्रदर्शन नहीं बल्कि अपनी लोक कला , संस्कृति और परंपराओं को जीवंत बनाए रखने का एक सशक्त माध्यम है । विशेष रूप से दीपावली के समय जब महिलाएं खेतों के कार्यों से अवकाश में होती हैं , तब वे समूह में इकट्ठा होकर यह नृत्य करती हैं । इससे सामूहिकता , मेल-जोल और सामाजिक सहयोग की भावना को भी बल मिलता है ।
सुआ रीना नृत्य जो मुख्यतः छत्तीसगढ़ और आसपास के आदिवासी अंचलों की गोंड , बैगा , और अन्य जनजातियों में प्रचलित है , आज भी लोकभाषा , रीति-रिवाज और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बना हुआ है ।
इस मौके पर महिलाओं ने यह संदेश भी दिया कि —
> “हमारी लोक परंपराएं केवल मनोरंजन नहीं , बल्कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों की पहचान हैं । इन्हें संजोकर हम आने वाली पीढ़ियों को एक मजबूत सांस्कृतिक विरासत सौंप सकते हैं।”
दीपावली के इस अवसर पर अमरकंटक में प्रस्तुत सुआ रीना नृत्य ने जहां त्योहार की खुशियों को दोगुना किया , वहीं लोक संस्कृति को जीवित रखने के प्रयासों की भी एक सशक्त मिसाल पेश की ।