अनूपपुर जिले में डुबती कांग्रेस को किसका सहारा अंधेरे में सुई तलाश रहे जगताप

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पं अजय मिश्र

अनुपपुर। कांग्रेस की नाव अनूपपुर में ऐसी हिचकोले खा रही है कि खुद मल्लाह भी तौलिया फेंकने की सोच रहा है। इस राजनीतिक समुद्र में जब पार्टी को तिनके का सहारा चाहिए, तभी प्रकट होते हैं—श्रीमान जगताप! जी हां, वही जगताप, जो आजकल “जनता” से ज्यादा “जनता दरबार” में व्यस्त रहते हैं और जिनकी राजनीति में सक्रियता अब फेसबुक लाइव और पुराने फोटो रिपोस्ट करने तक सीमित हो गई है।
अनूपपुर जिले की राजनीति में इन दिनों कांग्रेस की स्थिति उस नाव की तरह हो गई है, जो बिना पतवार और दिशाहीन होकर भंवर में फंसी हुई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता खुद चिंतन शिविर से अधिक “किंतन” शिविर में व्यस्त हैं – सोच रहे हैं कि अब क्या किया जाए।
जानकारी के अनुसार जगताप पार्टी के लिए सहारा बनने निकले हैं, हालांकि अभी तक उन्हें खुद अपनी राह नहीं मिली है। पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि वे हर दिन “नए दृष्टिकोण” के साथ आते हैं, पर कार्यकर्त्ता पूछते हैं – “दृष्टिकोण है या चश्मे की दुकान?”

वहीं कांग्रेस कार्यालय में सन्नाटा पसरा है। खिड़कियों से झांकते पोस्टर, दीवारों पर छपी पुरानी घोषणाएं और टूटी कुर्सियां इस बात की गवाही देती हैं कि अब यहां ‘भविष्य’ नहीं, सिर्फ़ ‘इतिहास’ है।
कार्यकर्ताओं की मानें तो श्रीमान जगताप कांग्रेस को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं—हालांकि ये प्रयास वैसा ही है जैसे कोई अंधेरे कमरे में काली सुई ढूंढ़ रहा हो, वो भी तब जब सुई वहां रखी ही नहीं गई थी।
पार्टी की वर्तमान हालत पर जब स्थानीय कार्यकर्ता से बात की गई, तो उन्होंने कहा—”जगताप जी का आत्मविश्वास इतना ऊंचा है कि हकीकत ज़मीन पर भी उनकी नज़रों से ओझल है।” उन्होंने ये भी जोड़ा, उन्होंने वादा किया था कि विकास आएगा, अब वो विकास गुमशुदा है और जगताप जी खोज में निकले हैं।”
कांग्रेस की अंदरूनी स्थिति को लेकर जानकारों का मानना है कि पार्टी में अब न तो संगठन बचा है, न जोश, और न स्पष्ट नेतृत्व। ऊपर से जगताप जैसे नेता जब “सुधारक” बनकर उभरते हैं, तो पुराने कार्यकर्ताओं को एक ही गाना याद आता है—“मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू ?
शहर के एक पुराने कांग्रेसी ने कहा कि , “कांग्रेस को जो सहारा चाहिए, वो नेतृत्व में स्पष्टता और जमीनी पकड़ है। जगताप जी, फिलहाल सिर्फ़ पोस्टर और प्रचार में मजबूत व्यक्ति की तलाश में हैं, मैदानी कार्यकर्ता की नहीं।”
स्थानीय विश्लेषक कहते हैं, “पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए विचार, नेतृत्व और ज़मीनी काम की ज़रूरत है – न कि केवल भाषण और फोटो खिंचवाने की।”
अनूपपुर में कांग्रेस की हालत ऐसी हो गई है कि अब तिनके का भी सहारा काफी नहीं। और जब तिनका भी खुद को तराशने में व्यस्त हो, तो संगठन की डूबती नाव को बचाने का कोई मल्लाह दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता।
वहीं विपक्षी दलों ने इस पूरी स्थिति पर चुटकी लेते हुए कहा—“अनूपपुर की राजनीति में कांग्रेस का हाल वैसा ही है जैसे बिना पायलट के प्लेन को ऑटोपायलट पर छोड़ दिया गया हो, और जगताप जी को लगा कि वो रनवे हैं!”
जब कांग्रेस को डूबती नैया बचाने की ज़रूरत है, तब उसे मिल रहा है एक ऐसा नाविक, जो खुद दिशाहीन है। ऐसे में अनूपपुर की जनता इंतज़ार में है—या तो कोई असली कप्तान आए, या फिर यह तमाशा भी खत्म हो।