पुरातन जीवन शैली को अपनाने की जरूरत:अहिरवार
०बाल गृह में पर्यावरण संरक्षण पर हुई कार्यशाला०
शिवपुरी। रंजीत गुप्ता। पर्यावरण संरक्षण को लेकर अधिकतर लोग अच्छे उपदेशक के रूप में सक्रिय हैं लेकिन आज आवश्यकता उपदेश से आचरण की ईमानदारी की है,क्योंकि प्रकृति के साथ शोषण की सभी सीमाओं को मनुष्य विकास के नाम पर पार कर चुका है।यह बात जिला आजीविका मिशन की समन्वयक श्रीमती कामना चतुर्वेदी सक्सेना ने आज मंगलम वात्सल्य गृह में आयोजित एक कार्यशाला को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए कही।”सतत जीवनशैली और प्राकृतिक संसाधनों के युक्तियुक्त अनुप्रयोग “विषय पर आयोजित इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में माधव नेशनल पार्क की उप संचालक सुश्री प्रतिभा अहिरवार के अलावा विशिष्ट अतिथि के रूप में हैपीडेज स्कूल की प्रमुख श्रीमती गीता दीवान एवं महिला बाल विकास के सहायक संचालक महेंद्र सिंह अंब उपस्थित रहे।
बाल गृह के बालकों ने स्वच्छता औऱ सिंगिल यूज प्लास्टिक पर केंद्रित एक नुक्कड़ नाटक का मंचन किया जिसमें पर्यावरण संरक्षण का महत्वपूर्ण सन्देश समाहित था।
श्रीमती प्रतिभा अहिरवार ने अपने उध्बोधन में इस बात पर जोर दिया कि हमारी पुरातन जीवन शैली को अपनाए जाने की आवश्यकता है उन्होंने कहा कि कोविड में हम सीमित संसाधनों के साथ जीना सीख चुके है इसे निरन्तरता के साथ जीवन का अंग बनाया जाना चाहिए प्राकृतिक स्रोतों के कम से कम प्रयोग के साथ हमें सह अस्तित्व के साथ लोक जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाना होगा।
हैपीडेज की संचालिका श्रीमती गीता दीवान ने पर्यावरण जागरूकता के प्रति मंगलम संस्था के प्रयास पिछले दो साल में काफी सराहनीय रहे है।उन्होंने कहा कि जागरूकता औऱ आचरण में ईमानदारी से ही पृथ्वी को बचाया जा सकता है।
बाल गृह की मानसेवी शिक्षक श्रीमती रेणु सांखला ने कार्यशाला का विषय प्रवर्तन करते हुए इस बात पर जोर दिया कि केवल सरकारी तंत्र के भरोसे हम पर्यावरण को बचा नही सकते है।धरती हर जीवित प्राणी की माँ है इसलिए प्रकृति के साथ हमें शोषण नही पोषण के रिश्ते को कायम करके चलना ही होगा।
कार्यक्रम के दौरान बाल गृह का प्रतिवेदन मनीषा कृष्णानी ने प्रस्तुत किया।कार्यक्रम का संचालन बाल संरक्षण अधिकारी राघवेंद्र शर्मा ने किया एवं आभार प्रदर्शन की रस्म मंगलम संचालक राजीव श्रीवास्तव ने पूरी की।कार्यक्रम में जेनिथ फाउंडेशन, इनरव्हील क्लब,मंगलम समेत अन्य संस्थाओं के गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।इस कार्यशाला का आयोजन पर्यावरण नियोजन एवं संरक्षण संगठन एप्को भोपाल के सहयोग से किया गया था।
हजार साल तक सिंथेटिक साड़ियां जिंदा रहती है
श्रीमती कामना चतुर्वेदी सक्सेना ने कार्यशाला में रोचक उदाहरण के जरिये पर्यावरणीय त्रासदियों को रेखांकित किया।उन्होंने बताया कि महिला जब एक सिंथेटिक साड़ी खरीदती है तो उस साड़ी के रेशे एक हजार साल तक धरती को दूषित करते हैं।
इसी तरह इंसान तो 100 साल से कम में पूरा जीवन जी कर दुनिया से विदा हो जाता है लेकिन उसके द्वारा उपयोग की गई प्लास्टिक हजारों साल तक उसके पाप कर्मों से पृथ्वी की कष्ट देते हैं।उन्होंने उपस्थित सभी लोगों से संकल्प दिलाया कि जीवन में कम से कम प्लास्टिक का उपयोग करेंगे।