कब की मर चुकी आत्माओं को आज खुद के लिए वो आवाज़ें चाहिए जो अनगिनत मौकों पर कह कह कर थक चुकीं कि कुछ बोलो, वरना वो एक दिन आएगा जब तुम्हारे लिए आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं बचेगा,जब खुद की लगाई आग एक दिन तुम्हारा ही घर जलाएगी! जब तुम्हारी ये अनैतिक चुप्पी एक दिन खूब शोर मचाएगी! वैसे भी अनुपपुर की जनता संघर्ष करने की आदी नहीं है उसे तो सबकुछ बिना मांगे ही चाहिए तभी तो अब उसे हर और निराशा हीं हाथ लग रही है
जिला अस्पताल अनूपपुर में डॉक्टर की लापरवाही ने फिर एक ममता की जान ले ली है ममता पांडेय की मौत हाई ब्लड प्रेशर की तकलीफ में हुई थी जिला अस्पताल में 4 घण्टे तक किसी डॉक्टर ने इलाज नही किया परिजन ड्यूटी डॉक्टर से गुहार लगाते रहे पर डॉक्टर गणेश प्रजापति ने एक नहीं सुनी उस पर तुक्का ये कि मैं नहीं हूं ड्यूटी डॉक्टर प्रबंधन से पूछिए कौन देखेगा साथ ही प्रबंधन के मुखिया अवधिया इनसे आगे ही रहे उन्होंने तो परिजनों से ही कह दिया अब नौकरी करना मुस्किल है
अब आप ही विचार करें अनुपपुर किन लोगों के हाथो में है व कितना सुरक्षित है
क्या ऐसे डॉक्टरों के हाथ अनूपपुर की जनता की जान से खिलवाड़ करने के लिए सौपा जा सकता है या इन डॉक्टरों पर कार्रवाई होनी चाहिए वही परिजन एफआईआर के लिए अड़े हुए हैं जिले की मीडिया लगातार स्वास्थ्य विभाग की कमियां उजागर करती रहती है उसके बाबजूद भी प्रशासन के कानो तक पत्रकारों की आवाज़ नही पहुंच रही है न जाने आज तक कितनी ममता स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का शिकार हो चुकी है पर गलती सिर्फ विभाग की नही है उनसे ज्यादा गलती तो अनुपपुर की जनता की है जो हर वार खामोश रह जाती है और सिर्फ मोमबत्ती जलाने को ही अपना फर्ज मानती आई है
सवाल उठना स्वाभाविक है की अनूपपुर जिला प्रशासन स्वास्थ विभाग को बचाने का प्रयास क्यो कर रहा है..?जानबूझकर जांच नहीं कर रहा..? लेकिन यह सवाल स्थानीय प्रशासन के बजाय भोपाल दिल्ली मैं बैठे सत्ताधीशों से पूछने की जरूरत ज्यादा है क्योंकि
भ्रष्टाचार व लापरवाही दिल्ली भोपाल से होते हुए अनूपपुर पहुंच रही है ऐसे में मुंह ताकने के सिवा सीधा सवाल करें.ओर जब प्रशासन मौन धारण कर ले तो फिर रोइए अपनी बेबसी को.. जब और बेजार हो जाएं तो भी जांच व कार्यवाही की बात मत कीजिए.. सवाल मत उठाइए
पीटिए थाली,निकालिए जुलूस…जलाइए मोमबत्ती, कीजिए आतिशबाजी.. मनाइए जश्न जिम्मेदारों की अदूरदर्शिता निकम्मेपन, संवेदनहीनता और नकारेपन का…
और कुछ नहीं तो हम जैसे पत्रकार साथियों को जमकर गरियाइए.. क्योंकि हम, सत्ता के “मरकज” में बैठे “जमातियों” को आईना दिखाने की कोशिश जो कर रहे है.