अमरकंटक मे नर्मदा तट पर आज मनाया जाएगा श्रावणी महोत्सव

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मृत्युंजय आश्रम की अगुवाई मे रक्षाबंधन के दिन होगा आयोजन

अमरकंटक। मां नर्मदा की पावन उद्गम नगरी अमरकंटक मे आज रक्षाबंधन पर्व के दिन श्रावणी महोत्सव मनाया जाएगा । इस पावन अवसर पर परमपूज्य महामण्डलेश्वर स्वामी श्री हरिहरानंद सरस्वती जी महाराज स्वयं कार्यक्रम मे उपस्थित रहेंगे।
ब्राम्हणों द्वारा विधि विधान के साथ धारण किये जाने वाले यज्ञोपवीत ( जनेऊ ) को बदलने और मंत्रोच्चारित जनेऊ को वर्ष भर के लिये सहेजने का श्रावणी पर्व प्रतिवर्ष श्रावण की पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों ,सरोवरों के तट पर संस्कार के रुप मे मनाया जाता है।
इस पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए मृत्युंजय आश्रम अमरकंटक के परम पूज्य संत महामण्डलेश्वर स्वामी श्री हरिहरानंद सरस्वती जी महाराज ने बतलाया कि श्रावणी पर्व, जिसे श्रावणी पूर्णिमा भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो ज्ञान, विद्या और ऋषियों के प्रति कृतज्ञता का ऐसा पर्व है जिसमे जनेऊ धारण करने वाले सुसंस्कारित ब्राम्हण दस स्नान के साथ पूरे विधि विधान का पालन करते हुए अपना यज्ञोपवीत बदलते हैं। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इस दिन यज्ञोपवीत (पवित्र धागा जनेऊ ) संस्कार, वेद-पुराणों का पठन-पाठन किया जाता है । श्रावणी पर्व ज्ञान और विद्या की साधना का पर्व है । इस दिन, गुरुकुलों में शिक्षण सत्र का आरंभ होता था और छात्र यज्ञोपवीत संस्कार के साथ वेद-वेदांगों का अध्ययन शुरू करते थे । यह पर्व ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी अवसर है, जिन्होंने हमें ज्ञान का प्रकाश दिया। इस दिन, ऋषि-तर्पण करके ऋषियों के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। श्रावणी पर्व आत्मशुद्धि और आत्मचिंतन का भी पर्व है। इस दिन, लोग पवित्र नदियों में स्नान करके और धार्मिक अनुष्ठान करके अपने पापों से मुक्ति पाने का प्रयास करते हैं। श्रावणी पूर्णिमा को रक्षा बंधन का पर्व भी मनाया जाता है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं । परिवार के आचार्य मंत्रोच्चारित रक्षा सूत्र अपने यजमानों को बाँधते हैं ।राष्ट्र और धर्म की रक्षा का संकल्प लेते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्रावणी पर्व के दिन, लोग नदी में खड़े होकर राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए संकल्प लेते हैं।
आज 9 अगस्त को रक्षा बंधन के दिन प्रात: 8 बजे से नर्मदा तट पर रामघाट मे अमरकंटक के प्रकाण्ड विद्वानों, आचार्यों, पुरोहितों के साथ सभी जगह से आने वाले ब्राम्हणों,वेद पाठी बटुकों एवं अन्य लोगों के साथ पूरे विधि विधान के साथ श्रावणी महोत्सव मनाया जाएगा। इस अवसर पर आचार्यो द्वारा पवित्र स्नान,हवन,पूजन, यज्ञोपवीत धारण , प्रसाद ग्रहण का कार्यक्रम सम्पन्न होगा। इस आयोजन की वृहद तैयारी, आमंत्रण प्रेषण का कार्य किया जा रहा है। जिसे लेकर समाज के लोग उत्साहित हैं।
अमरकंटक के रामघाट तट पर स्थित मृत्युंजय आश्रम द्वारा श्रावण मास की पूर्णिमा पर श्रावणी पर्व का भव्य धार्मिक एवं आध्यात्मिक आयोजन किया जाएगा। यह आयोजन श्रवण नक्षत्र की पूर्णिमा, संस्कृत दिवस और नारियल पूनम के पर्व के साथ इस वर्ष शनिवार, 9 अगस्त 2025 को संपन्न होगा।
आश्रम के आचार्य, पुरोहित, ब्राह्मण एवं वेदपाठी बालक सबसे पहले पतित पावनी मां नर्मदा के पवित्र जल में स्नान-डुबकी लगाकर जनेऊ परिवर्तन संस्कार करेंगे। वैदिक परंपरा के अनुसार यह क्रिया वर्षभर में मन, वचन और कर्म से हुई त्रुटियों की क्षमा-याचना, आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के उद्देश्य से की जाती है।
इसके उपरांत उपस्थित विद्वान एवं ब्राह्मणगण अपने-अपने गोत्र के ऋषियों का तर्पण, होम-हवन एवं देव पूजन करेंगे। यह धार्मिक अनुष्ठान नर्मदा मंदिर परिसर कुंड में स्थानीय पुजारी परिवार के द्वारा किया जाता रहा है ।
श्रावणी पर्व का महत्व

श्रावणी पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे श्रावणी पूजन या उपनयन संस्कार दिवस भी कहते हैं। यह पर्व मुख्यतः ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज में विशेष धार्मिक महत्व रखता है।वैदिक परंपरा में इसे वेदाध्ययन और यज्ञोपवीत परिवर्तन का दिन माना जाता है।
इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, गोत्र ऋषियों को तर्पण, देव पूजन, दान-पुण्य और हवन का विशेष महत्व है।उत्तर भारत में इसे रक्षाबंधन, महाराष्ट्र में नारली पूर्णिमा, दक्षिण भारत में वेदाध्ययन की शुरुआत और गुजरात-राजस्थान में पवित्रा एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है।

धार्मिक मान्यता

माना जाता है कि श्रावणी पर्व पर किए गए स्नान, जनेऊ परिवर्तन, तर्पण और दान से पापों का क्षय होता है, पुण्य की प्राप्ति होती है तथा समाज में भाईचारे और आध्यात्मिक अनुशासन की भावना प्रबल होती है।