अधिसूचित अनूपपुर: आदिवासियों के अधिकारों पर विकास के नाम पर डाका”

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अधिसूचित अनूपपुर: आदिवासियों के अधिकारों पर विकास के नाम पर डाका”

सरकारी वादों के बीच जमीनी हकीकत—जमीन छीनी जा रही, शिक्षा-स्वास्थ्य बदहाल, संस्कृति पर संकट
पं अजय मिश्र

अनूपपुर – अधिसूचित लेकिन अधूरा विकास
अनूपपुर जिला वर्षों पहले अनुसूचित क्षेत्र घोषित हुआ था, ताकि आदिवासी समाज के अधिकार, संसाधन और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखा जा सके। लेकिन वर्षों बाद भी हालात वही हैं—टूटे रास्ते, अधूरी पेयजल योजनाएं, और बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं। सरकारी फाइलों में विकास की लंबी सूची है, लेकिन गांवों में आज भी लालटेन की रोशनी और कच्ची पगडंडियां ही ‘विकास’ की असल तस्वीर दिखाती हैं।

– जमीन से बेदखली का खेल

जमीन संरक्षण के कानून होने के बावजूद खदानों और परियोजनाओं के लिए आदिवासियों की पैतृक भूमि छीनी जा रही है। बड़े ठेकेदार और कॉर्पोरेट घराने जंगल और खेत हड़प रहे हैं, जबकि प्रशासन अक्सर ‘विकास’ के नाम पर इस लूट को वैध ठहराता है। नतीजा—जिन लोगों की जमीन थी, वे अब वहीं दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं।

– शिक्षा और स्वास्थ्य की पोल

कई गांवों में स्कूल भवन तो हैं, लेकिन शिक्षक महीनों तक गायब रहते हैं। बच्चे दूर-दराज पैदल जाकर पढ़ाई करते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं का हाल और भी चिंताजनक है—अस्पतालों में डॉक्टर नहीं, दवाएं नहीं, और मरीजों को इलाज के लिए जिला मुख्यालय या पड़ोसी जिलों की ओर भागना पड़ता है। सरकारी घोषणाएं और जमीन पर हकीकत के बीच गहरी खाई है।

– संस्कृति की घुटती सांस

आदिवासी भाषा, गीत, नृत्य और त्यौहार उनकी पहचान हैं, लेकिन उन्हें ‘मुख्यधारा’ में लाने के नाम पर उनकी संस्कृति को पीछे धकेला जा रहा है। स्कूलों में स्थानीय बोली पर ताने, त्यौहारों की अनदेखी और पारंपरिक जीवनशैली को ‘पिछड़ापन’ बताने का चलन, आदिवासी अस्मिता पर सीधा हमला है।

– अब नहीं, तो कभी नहीं

अधिसूचित क्षेत्र का दर्जा सिर्फ सरकारी रिपोर्टों का हिस्सा बनकर न रह जाए, इसके लिए ठोस और पारदर्शी कदम उठाने होंगे। जमीन, जंगल, जल और संस्कृति की रक्षा करना प्रशासन और जनता दोनों की जिम्मेदारी है। अनूपपुर के आदिवासियों को अब संगठित होकर अपनी आवाज उठानी होगी—क्योंकि चुप्पी की कीमत उनका अस्तित्व हो सकती है।