



शास्त्र सम्मत स्कंध पुराण और बाल्मीकि रामायण अनुसार ही रामचंद्र जी किए थे दमगढ़ से नर्मदा पार – डॉ रामगोपाल
अमरकंटक में अनेक संतो से मुलाकात व चर्चा कर कहा गुमनाम पवित्र स्थलों का विकास हेतु कार्य किए जाएं
अमरकंटक। श्रवण उपाध्याय। मां नर्मदा जी की उद्गम स्थली / पवित्र स्थली अमरकंटक पधारे डॉ रामगोपाल सोनी
का अमरकंटक भ्रमण और नर्मदा मैया की दिव्यता और परमपावन तीर्थस्थल के मोक्षदायक स्थल के महत्व को शब्दों में वयान करने में उन्होंने कहा मेरे पास इतनी न तो विद्वता है और न तो शब्द ही है पर जो मुझे शास्त्र सम्मत मालूम है और खासतौर से स्कन्द पुराण और वाल्मीक रामायण के अनुसार जो महत्वपूर्ण वर्णन है और जिसका विकाश और प्रचार की जरुरत है उनमे
भगवान् परशुराम की जन्मस्थली अर्थात महर्षि जमदग्नि आश्रम स्कन्द पुराण के अनुसार कपिल धारा के उत्तर में वैदूर्य पर्वत है इसे ही मान्धाता पर्वत कहते है , के पश्चिम में प्राचीन काल में नर्मदापुर नाम की बस्ती थी जहां पर वर्तमान में दमगढ़ बस्ती है वहीं पर महर्षि जमदग्नि का आश्रम था जो भगवान् परसुराम जी के पिता थे . और यही भगवान् परसुराम की जन्म स्थली भी है । भगवान् परसुराम विष्णु के 6 वे अवतार थे जिनकी कीर्ति और पराक्रम त्रेता युग से द्वापर तक विश्व विजयी के रूप में विख्यात थी ।
डॉ रामगोपाल सोनी बताते है कि अज्ञानता वस उनका जन्मस्थान जानापाव मान लिया गया है जो यद्यपि शास्त्र सम्मत नहीं है किन्तु ऐसे महान बिभूति की पूजा कहीं भी स्वागत योग्य है ।
अमरकंटक ऋषियों की तपोस्थली रही है । महर्षि महामुनि अगस्त्य का आश्रम नर्मदा नदी के उद्गम के पूर्व में था । भगवान् राम यही अमरकंटक में महर्षि अगस्त्य से मिलकर यही से दक्षिण दिशा में विन्ध्य पार कर दंडकारण्य बस्तर में भद्राचलम के समीप पर्णशाला गए थे । इसी पर्णशाला से जो गोदावरी किनारे थी से माता सीता का अपहरण हुआ था ।
डॉ सोनी संतो से आग्रह और अमरकंटक क्षेत्र में परशुराम जी की जन्मस्थली पर भव्य परसुराम लोक का निर्माण होना चाहिए ऐसा संतो से मिलकर वार्ता की , साथ ही मार्कंडेय आश्रम और अगस्त्य आश्रम का भी समुचित विकाश और प्रचार प्रसार होना चाहिए । भगवान् राम का नर्मदा को पार करने का स्थल और स्नान स्थल दमगढ़ से बाराती नाला के नर्मदा के संगम से भगवान् राम ने नर्मदा नदी पार की थी और यही पर उन्होंने भाई लक्ष्मण और माता सीता जी के सहित नर्मदा नदी में स्नान किया था । डॉ सोनी आगे बताते है कि दमगढ़ बस्ती में उस समय अगस्त्य ऋषि के छोटे भाई का आश्रम था जिनके आश्रम में एक रात्री प्रभु राम ने बिताया था । वाल्मीक रामायण में इस जगह को समतल भूमि और पीपली का वन होना बताया है । पीपली का वन प्राकृतिक रूप से सेंट्रल इंडिया में केवल अमरकंटक में ही पाया जाता था । यह अत्यंत पवित्र तीर्थ के रूप में विख्यात थी । कालान्तर में लुप्त हो गया किन्तु इस परम पवित्र पावन स्थल का विकाश भी होना चाहिए और प्रचार भी ।
आदि शंकराचार्य के गुरु गोविन्द भागवत पाद की गुफा जो दूध धारा के पास है जिसे वर्तमान में दुर्वासा गुफा के नाम से जाना जाता है । वास्तव में आदि शंकराचार्य के गुरु की गुफा है । यही पर्वत मान्धाता पर्वत है जिसे पहले वैदूर्य पर्वत कहा जाता था , अभी दमगढ़ कहा जाता है । आदि शंकराचार्य अपने ग्राम कलाडी केरल से महिष्मतीपुर होकर अमरकंटक गए थे । प्राचीन महिष्मतीपुर वास्तव में वर्तमान मंडला ही है जिसका भौगोलिक वर्णन ब्रह्मपुराण में कुछ इस तरह लिखा है कि इस शहर को नर्मदा नदी तीन ओर से घेरे हुए थी । इसी महिष्मती पुर का चक्रवर्ती राजा जिसने त्रैलोक्य विजयी रावण को बंदी बना लिया था और जो यदुवंश का सबसे प्रतापी राजा था और इनका वध जमदग्नि नंदन परसुराम ने किया था । क्योंकि ये शिकार खेलने अमरकंटक में जमदग्नि आश्रम आए थे और कामधेनु गाय को बलपूर्वक लेने के प्रयास में इनके सैनिको ने महर्षि जमदग्नि की ह्त्या कर दी थी . माता रेणुका के 21 बार छाती पीटने पर परसुराम जी ने दुष्ट क्षत्रिय राजाओं का 21 बार विनाश किया था ।
डॉ रामगोपाल सोनी अमरकंटक के परमहंस धारकुंडी आश्रम पहुंच संत स्वामी लवलीन महाराज से भेंटवार्ता कर साथ चल कल्याण सेवा आश्रम पहुंच स्वामी हिमाद्रि मुनि जी महाराज से मुलाकात कर राम वन गमन पथ से संबंधित विस्तृत चर्चा की गई । उसके बाद शांति कुटी आश्रम पहुंच श्रीमहंत स्वामी रामभूषण दास जी महाराज से भेंटवार्ता में उन्होंने कहा कि राम वन गमन पथ अमरकंटक में धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से जो खोज किया जा रहा है जिससे लोगों को सही जानकारी मिल सके , यह अच्छी उपलब्धि है । यह ध्यान देने की जरूरत है , इस पर चर्चा विस्तार से करने की आवश्यकता है ।
डॉ सोनी का कहना है कि राम वन गमन पथ अमरकंटक क्षेत्र के इन गुमनाम पवित्र स्थलों का विकाश करने हेतु वरिष्ट स्तर पर राज्य सरकार के माननीय मुख्यमंत्री जी के समक्ष प्रस्तुत किया किया जाना चाहिए । डॉ सोनी संग महामंडलेश्वर डॉ पंडित मनेश्वरानंद जी महाराज भोपाल , श्री ओ पी अग्रवाल रहे ।