प्राचार्य को हटाने के पीछे गहरी साजिश के आरोप

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देपालपुर के सरकारी स्कूल में प्रेम प्रसंग प्रकरण का बड़ा विस्फोट 

शिक्षा तंत्र सवालों के घेरे में

देपालपुर।  संदीप सेन । शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय देपालपुर में शिक्षक–शिक्षिका के प्रेम प्रसंग की शिकायत का मामला अब शिक्षा व्यवस्था को हिलाने वाला बन गया है। विद्यालय की दो छात्राओं द्वारा एसडीएम के समक्ष की गई शिकायत को आधार बनाकर जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा की गई जल्दबाज़ी भरी कार्रवाई पर गहन सवाल उठ खड़े हुए हैं। गंभीर आरोप हैं कि प्रेम प्रसंग में शामिल शिक्षक और शिक्षिका को बचाने के लिए एक शिक्षक नेता ने पूरा खेल रचा, मनगढ़ंत कहानी और गढ़े हुए तथ्यों के आधार पर जिला शिक्षा अधिकारी को भ्रमित किया और बिना औपचारिक जांच, बिना बयान, बिना समिति — सीधे प्राचार्य को पद से हटा दिया गया। विशेष रूप से यह तथ्य चौंकाने वाला है कि जिस प्राचार्य के नेतृत्व में विद्यालय ने लगातार तीन वर्षों तक 10वीं और 12वीं बोर्ड में 90% से अधिक उत्कृष्ट परिणाम दिए, उसी प्राचार्य को परीक्षा सत्र के चरम पर हटाना शिक्षा तंत्र के उद्देश्य और नीयत दोनों पर सवाल खड़े करता है। विद्यालय के छात्राओं और शिक्षकों के अनुसार प्रेमी शिक्षक–शिक्षिका का वास्तविक दंड प्राचार्य भुगत रहे हैं और यह पूरा खेल प्रेमी जोड़े को बचाने तथा प्राचार्य को हटाने की सुनियोजित साजिश है। इसके साथ ही विश्वसनीय सूत्रों द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि शिक्षक नेता के माध्यम से जिला शिक्षा अधिकारी और प्रेमी शिक्षक–शिक्षिका के बीच आर्थिक लेनदेन तक हुआ — यदि यह सच है तो मामला केवल अनैतिक नहीं बल्कि शिक्षा विभाग की पारदर्शिता पर सीधा हमला है। बोर्ड परीक्षाओं के ठीक पहले प्राचार्य का अचानक परिवर्तन न केवल प्रशासनिक संवेदनशीलता की अनदेखी है, बल्कि विद्यालय के परिणाम, अनुशासन और छात्राओं के मनोबल पर भी सीधा प्रहार है। छात्राओं का सीधा आरोप है कि “दोषियों को बचाया गया, निर्दोष को हटाया गया” और इस निर्णय ने पूरे विद्यालय को स्तब्ध और क्षुब्ध कर दिया है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या शिक्षा विभाग का उद्देश्य अनुशासन बनाए रखना है या निजी हितों और गुटबाज़ी की रक्षा करना? क्या किसी शिक्षक–शिक्षिका के निजी संबंधों की आड़ में सत्य को कुचल दिया जाएगा? क्या जिला शिक्षा अधिकारी का निर्णय प्रशासनिक विवेक का परिणाम था या किसी दबाव और लेनदेन का? शिक्षा व्यवस्था के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा है जब उत्कृष्ट बोर्ड परिणाम दिलाने वाला प्राचार्य दोषियों की जगह बलि का बकरा बना दिया गया और यह निर्णय न केवल विवादास्पद है बल्कि शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सीधा प्रहार है। अब पूरा जिला इस सवाल का जवाब चाहता है — आखिर स्कूल पर नहीं, साजिश पर भरोसा करके प्राचार्य को क्यों हटाया गया? जब बोर्ड परीक्षाएँ सिर पर हों, विद्यालय को स्थिर नेतृत्व की सबसे अधिक आवश्यकता हो — तब इस प्रशासनिक प्रहार का क्या अर्थ है? देपालपुर में शिक्षा तंत्र की दिशा और नीयत दोनों कठघरे में खड़ी हैं और इस प्रकरण ने साफ कर दिया है कि अब असली लड़ाई सत्य बनाम साजिश की है — और जनता, विद्यालय परिवार तथा छात्राएँ इस अन्याय के खिलाफ न्याय की मांग के साथ खड़ी हैं।