विकास की प्यास में सूखती ‘केवई’

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

अनूपपुर में आसन्न जल संकट की पदचाप
​अनूपपुर। नर्मदा और सतपुड़ा की गोद में बसी अनूपपुर की धरती, जो अपनी पवित्र नदियों और सघन वनों के लिए जानी जाती है, आज एक बड़े पर्यावरणीय संकट के मुहाने पर खड़ी है। कोतमा तहसील के ग्राम छतई में अदाणी पावर प्लांट के विस्तार और केवई नदी पर प्रस्तावित स्टॉप डैम ने विकास बनाम विनाश की एक नई बहस को जन्म दे दिया है। 3200 मेगावाट की क्षमता वाले इस महाकाय पावर प्लांट की ‘पानी की भूख’ भविष्य में इस पूरे अंचल को एक गंभीर जल संकट की ओर धकेलने वाली साबित हो सकती है।

नदी का गला घोंटता स्टॉप डैम

​केवई नदी, जिसे इस क्षेत्र की जीवनरेखा कहा जाता है, पर स्टॉप डैम का निर्माण इसके प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करेगा। तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि जब किसी नदी के ऊपरी प्रवाह पर बड़ा बांध या अवरोध बनाया जाता है, तो निचले इलाकों में ‘इकोलॉजिकल फ्लो’ (पारिस्थितिक प्रवाह) खत्म हो जाता है। इसका सीधा असर सोन नदी पर भी पड़ेगा, जिसकी केवई एक प्रमुख सहायक नदी है।

खेती और भूजल पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’

​अनूपपुर एक कृषि प्रधान जिला है। केवई नदी के तटवर्ती गांवों—मझटोलिया, उमर्दा, छतई और लगे हुए गांव के हजारों किसान सिंचाई के लिए इसी नदी पर निर्भर हैं।

​घटता जलस्तर:

स्टॉप डैम में पानी रुकने से भूजल पुनर्भरण की प्रक्रिया धीमी हो जाएगी। आने वाले 5-10 वर्षों में इस क्षेत्र के कुएं और हैंडपंप सूखने की कगार पर होंगे।

बंजर होती जमीन:

प्लांट से निकलने वाली ‘फ्लाई ऐश’ (राख) और रसायनों का रिसाव धीरे-धीरे उपजाऊ भूमि को बंजर बना देगा।

राख का अंबार और प्रदूषित पानी

​परियोजना के विस्तार के साथ राख का उत्पादन भी कई गुना बढ़ जाएगा। यदि यह राख केवई नदी के जल में मिलती है, तो पानी में भारी धातुओं की मात्रा बढ़ जाएगी। यह न केवल इंसानों के लिए कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बनेगा, बल्कि नदी के जलीय जीवन—मछली और कछुओं—को भी पूरी तरह समाप्त कर देगा।

वन्यजीवों के ‘कॉरिडोर’ पर हमला

​यह क्षेत्र कान्हा और अचानकमार जैसे महत्वपूर्ण टाइगर रिजर्व के बीच एक गलियारे का काम करता है। नदी पर भारी निर्माण और औद्योगिक शोर वन्यजीवों के विस्थापन का कारण बनेगा। पानी की तलाश में जंगली जानवर बस्तियों की ओर रुख करेंगे, जिससे भविष्य में ‘मानव-वन्यजीव संघर्ष’ की घटनाएं बढ़ना तय है।

जनसुनवाई और विरोध के स्वर

​स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि इस विस्तार परियोजना के लिए की गई जनसुनवाई महज एक औपचारिकता थी। ग्रामीणों की मुख्य चिंता यह है कि जिस जमीन और पानी पर उनका सदियों से हक था, वह अब एक निजी कंपनी के मुनाफे की भेंट चढ़ रहा है। विस्थापन का दंश झेल रहे ग्रामीणों के पास अब भविष्य को लेकर केवल असुरक्षा की भावना है।

चेतावनी या अवसर?

​औद्योगिकीकरण रोजगार दे सकता है, लेकिन वह स्वच्छ हवा और पानी का विकल्प नहीं हो सकता। यदि प्रशासन और प्रबंधन ने केवई नदी के संरक्षण और स्थानीय किसानों के जल अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो अनूपपुर की आने वाली पीढ़ियां केवल राख के ढेर और सूखे जल स्रोतों के बीच जीने को मजबूर होंगी। वक्त रहते सचेत होना जरूरी है, अन्यथा विकास की यह प्यास केवई का अस्तित्व ही मिटा देगी।