लड़खड़ाते बाजारों में क्या हो निवेशकों की राह

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शिवपुरी के आर्थिक विश्लेषक दुर्गेश गौड़ का लेख

शिवपुरी।रंजीत गुप्ता। वैश्विक उथल पुथल के बीच गत सप्ताह भारतीय शेयर बाजारों ने भारी बिकवाली का दौर देखा। मार्च माह में अमेरिका द्वारा घोषित टैरिफ नीति के बाद यह सर्वाधिक साप्ताहिक गिरावट है। विगत 6 कारोबारी सत्रों में सूचकांकों में 3% से अधिक की गिरावट आई । व निवेशकों ने अपने 16 लाख करोड़ रुपए गिरावट की भेंट चढ़ते देखा। अमेरिका द्वारा ब्रांडेड दवाओं पर शुल्क व वर्क वीज़ा फीस में बढ़ोत्तरी के उपरांत अमेरिकी खपत आधारित आई टी एवं फार्मा सेक्टरों में सर्वाधित गिरावट दर्ज की गई। निफ्टी फार्मा और आईटी में सप्ताहांत तक क्रमशः 5% व 8% की गिरावट दर्ज की गई। विदेशी निवेशकों द्वारा विगत सप्ताह 16000 करोड़ से अधिक की बिकवाली की गई। वैश्विक व्यापार नीतियों में चल रही अनिश्चितताओं के बीच भारतीय बाजारों में चल रहा निराशाजनक दौर आगे भी जारी रहना संभावित है।
सवाल यह है कि निवेशकों को इन रुझानों को किस प्रकार लेना चाहिए।बाजारों से दूरी बनाकर या हालिया गिरावट को मौका बनाकर। यह समझने के लिए हमे भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स की दूरगामी क्षमता को परखना चाहिए।
शुरुआत करते हैं मौद्रिक समीक्षा से। देश की मौद्रिक स्थिति अथवा मुद्रा की लागत, ब्याज दरों के मोर्चे पर फरवरी के बाद से अभी तक 1% तक की कटौती देखी गई है। हालिया जीएसटी दरों में कटौती उपरांत खुदरा महंगाई दरों में 2027 की दूसरी तिमाही तक 25 से 50 आधार अंकों तक की कमी देखी जा सकती है। 2026 में खुदरा मुद्रा स्फीति का अनुमान 3%के भीतर ही रखा जा रहा है व 2025 के आगामी महीनों के दौरान भी यह कमतर मापी जा रही है। उक्त अनुमानों से यह समझा जा सकता है कि आगामी महीनों में आरबीआई द्वारा रेपो दरों में कटौती देखी जा सकती है। जिसका सीधा लाभ घर, कार, उपभोक्ता वस्तुओं को खरीदने वाले उपभोक्ताओं को मिलेगा। साथ ही उत्पादकों को भी ब्याज, लागत कटौती के रूप में देखने को मिलेगा। बचत कर्ताओं के लिए भी महंगाई दर के सामने रियल बचत दरें लंबे समय से पॉजिटिव बनी हुई हैं। घरेलू खपत आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था में ब्याज की कटौती का असर कंपनियों की टॉप लाइन बॉटम लाइन ग्रोथ के साथ बाजारों में भी मजबूत सेंटीमेंट बनाता है। दूसरे क्रम पर 450 से अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं पर टैक्स कटिंग के बाद देश का राजकोषीय फंडामेंटल। कोरोना के चलते 2020/21 में जहां हमारा राजकोषीय घाटा बडकर 9.2% पर था वह 2024/25 तक कम करके 4.77% तक लाया गया है। तथा देश के आधारभूत ढांचे को मजबूत करते हुए पूंजीगत व्यय में सतत् वृद्धि करते हुए राजस्व घाटे को कम किया गया है। देश का राजस्व घाटा 2020/21 के 7.2% से कम होकर 2024/25 में 1.71% रह गया। वहीं इस दौरान पूंजीगत खर्च में 2.15 से 3.18 प्रतिशत की तेजी देखी गई। उक्त आंकड़े जीडीपी के प्रतिशत में हैं। प्रधानमंत्री द्वारा हालिया कर कटौती को 2.5 लाख करोड़ रुपय की महाबचत के नाम से राष्ट्र को समर्पित माना गया। अर्थात उक्त 2.5 लाख की बचत खपत के लिए त्योहारी माहौल में बाजारों के लिए उपलब्ध है। 6.5% की दर से आगे बढ़ रही दुनियां की चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था के मौद्रिक एवं राजकोषीय फंडामेंटल मजबूती के साथ प्रबंधित लगते हैं।
अब समझते हैं चालू खाता घाटे व उससे संबंधित रुपए का परिदृश्य।
अमेरिका द्वारा टैरिफ एवं वीज़ा शुल्कों में वृद्धि के बाद रुपए के मूल्य में 3.5% की गिरावट देखी गई। व यह आगे भी संभावित है। चालू खाते के परिप्रेक्ष्य में कच्चा तेल सबसे ज्यादा आयात की जाने वाली जिंस है। अमेरिका के टैरिफ के बदले रूस से कम कीमतों पर मिलने वाले तेल और उसके संशोधन उपरांत यूरोप को बेचने से होने वाली कमाई से घाटे की भरपाई की जा रही है। व रुपए की गिरावट अधिक टैरिफ के सामने निर्यात को मजबूती देने में सहायक है। इसीलिए आरबीआई को भी रुपए के पक्छ में अतिउत्साही डॉलर बिक्री करते हुए नहीं पाया गया। अर्थात अगर सही प्रबंधन के साथ द्विपक्षीय व्यापार संधियों को मूर्त रूप दिया जाए तो निर्यात के मोर्चे पर भारत एक सुनहरा अवसर भी पा सकता है।
अब भारतीय बाजारों में नई पूंजी सृजन की बात करें तो, भारतीय पूंजी बाजारों में इस वर्ष कुल 2.7लाख करोड़ रुपए से अधिक के आईपीओ संभावित हैं। जो बाजारों में तरलता प्रचुरता एवं निवेशकों का दूरगामी सकारात्मक पक्ष उजागर करती हैं।
अतः अर्थव्यव्स्था के बृहद फंडामेंटलों के भरोसेमंद प्रबंधन के बीच तात्कालिक गिरावट को बाजार मूल्यांकन में सुधार के रूप में भी देखा जा सकता है। व मध्यकाल एवं दीर्घकाल में बाजारों पर भरोसा दिखाकर निवेश लक्ष्यों को साधा जा सकता है।