देपालपुर अस्पताल में प्रसूता की मौत : न डॉक्टर, न एंबुलेंस

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परिजनों का आरोप – नर्सों की लापरवाही और सिस्टम की नाकामी ने छीनी एक मां की जिंदगी

देपालपुर। संदीप सेन। प्रदेश के स्वास्थ्य ढांचे पर बड़ा सवाल खड़ा करने वाली घटना देपालपुर शासकीय अस्पताल में सामने आई है, जहां एक प्रसूता महिला की मौत ने पूरे तंत्र की पोल खोल दी। खजराया निवासी 26 वर्षीय कल्पना पति राहुल पंवार की शुक्रवार शाम प्रसव के दौरान हालत बिगड़ी और अधिक रक्तस्राव से उसकी जान चली गई। लेकिन सवाल यह है कि अस्पताल में न तो स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मौजूद थे और न ही एंबुलेंस जैसी बुनियादी सुविधा। परिजनों का आरोप है कि डिलीवरी के समय ओपीडी ड्यूटी पर डॉक्टर चंद्रकला पंचोली तैनात थीं, लेकिन पूरी प्रक्रिया स्टाफ नर्स मनीष वर्मा, चंदा वर्मा और कवतिका शिवने ने संभाली। जल्दबाजी में दबाव डालकर बच्चे को बाहर निकाला गया, जिसके चलते महिला को भारी रक्तस्राव हुआ। टांके लगाने के बावजूद खून नहीं रुका और स्थिति गंभीर हो गई। इतना ही नहीं, अस्पताल में एंबुलेंस तक उपलब्ध नहीं थी। मजबूरी में परिजन पूर्व भाजपा जिला अध्यक्ष चिंटू वर्मा की ओर से चलाई जा रही निशुल्क एंबुलेंस सेवा से महिला को इंदौर एमवायएच ले जाने निकले, लेकिन रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। सवाल उठता है कि जब सरकारी अस्पतालों में मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं तो प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग के दावों पर भरोसा कैसे किया जाए। मृतका की यह तीसरी डिलीवरी थी। पहले से उसकी दो बेटियां थीं और इस बार बेटे का जन्म हुआ था। परिवार के घर में खुशी के बजाय मातम छा गया। परिजनों का साफ कहना है कि यह मौत केवल अस्पताल स्टाफ की लापरवाही नहीं बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की असफलता का परिणाम है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह पहली घटना नहीं है। नर्सों की मनमानी और लापरवाही लंबे समय से जारी है। शिकायतों के बावजूद मुख्य ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. वंदना केसरी उन पर नियंत्रण नहीं कर पाईं। यह सवाल प्रदेश सरकार से भी पूछा जा रहा है कि जबकि (जमीनी स्तर) पर व्यवस्था ही ध्वस्त है तो मातृ मृत्यु दर रोकने के लिए सरकारी योजनाएं किस काम की हैं। घटना के बाद परिजन और ग्रामीणों ने अस्पताल परिसर में हंगामा किया और दोषियों पर हत्या के समान मामला दर्ज करने की मांग की। जनता ने चेतावनी दी है कि यदि जिम्मेदारों पर कार्रवाई नहीं हुई तो बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा। अब सबकी निगाहें इंदौर कलेक्टर शिवम वर्मा और सीएमएचओ डॉ. माधव प्रसाद हसानी पर हैं, लेकिन सवाल केवल जिले का नहीं बल्कि प्रदेश सरकार का भी है। मुख्यमंत्री से लेकर स्वास्थ्य मंत्री तक को जवाब देना होगा कि आखिर कब तक आमजन इलाज की जगह लापरवाही से मौत का शिकार होते रहेंगे। यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं बल्कि पूरे सिस्टम की विफलता का आईना है। अब तय करना सरकार को है कि वह दोषियों पर कार्रवाई कर आमजन का भरोसा लौटाएगी या फिर यह मौत भी आंकड़ों में दर्ज होकर फाइलों में दब जाएगी।
एक तरफ तो मातृ शिशु मृत्यु दर को रोकने के लिए,, केंद्र और राज्य शासन मिलकर, संयुक्त प्रयास कर रही , वही इस सरकार के स्वास्थ्य विभाग का इस तरह की घोर अमानवी कृत्य को करने में लापरवाही को बरतने में व्यस्त है,, अब देखना यह है कि इस पूरे प्रकरण को लेकर राज्य मानव अधिकार आयोग स्वत संज्ञान लेता है यह वहां पर भी आवेदन देने की आवश्यकता होगी