( जन्मदिन पर विशेष — गीत दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार )
अगर कहा जाए कि ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, देशभक्ति, विनम्रता, प्रकृति संरक्षक, धैर्यवान, न्यायप्रियता, दूरदर्शिता, संचार कौशल, निर्णय लेने की क्षमता, सहानुभूति, नेतृत्व क्षमता, जिम्मेदारी, लचीलापन और दूसरों को प्रेरित करने की क्षमता का पर्याय मप्र के पंचायत और ग्रामीण विकास, श्रम मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल हैं तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि ये सारे गुण उनके सामाजिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक यात्रा में देखने को मिला है। इसलिए उनके बारे में कहा जाता है कि प्रहलाद पटेल जितने सियासी हैं उतने ही आध्यात्मिक।
प्रहलाद सिंह पटेल का जन्म 28 जून 1960 को गोटेगांव में हुआ था। उन्होंने छात्र राजनीति से अपने करियर की शुरुआत की और आज राजनीति के शिखर पर वे हैं। मप्र के धार्मिक और आध्यात्मिक कसबे नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव में एक किसान परिवार में जन्मे प्रहलाद के बारे में कहा जाता है की बचपन के दिनों से ही वे अराजकता भ्रष्टाचार और नशे के खिलाफ मुखर थे। लिहाजा वो गुण उनमे आज भी दिखाई देते हं और सही मायने में प्रहलाद के छात्र राजनीती से लेकर अब तक के तमाम आयाम इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित रहे हैं। उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1982 में बालाघाट के भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष के तौर पर की। इसके बाद वे लगातार सियासी सीढियां चढ़ते गए। 1989 में बालाघाट से ही पहली बार चुनकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद वे 1996 और 1999 में भी बालाघाट से और 2014 में दमोह से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2019 के आम चुनाव में भी उन्होंने दमोह सीट से ही जीत दर्ज की। अपने सियासी सफर के दौरान वे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कोयला मंत्री और अब मोदी सरकार में तीन-तीन मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। वे मप्र के इकलौते नेता हैं जिन्होंने चार लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा है। पांच बार के सांसद प्रहलाद पटेल ने सिवनी, बालाघाट, छिंदवाड़ा और दमोह से लोकसभा का चुनाव लड़ा है।
एक समय था जब वो साधु-संतों की तरह दाढ़ी और वेषभूषा रखते थे। वे श्री श्री बाबा श्री के भक्त हैं। उनके निर्देश पर उन्होंने दूसरी बार साल 2005 के फरवरी माह में नरसिंहपुर के गोटेगांव के पास मुआर घाट से मां नर्मदा परिक्रमा शुरू की थी। इस सफर में उनकी पत्नी भी साथ थीं। वे धुन के इतने धनी हैं कि गर्मी के मौसम में भी नर्मदा की परिक्रमा को अनवरत जारी रखी। 3,500 किलोमीटर की ये यात्रा पूरी करने में उन्हें 3 माह 11 दिन का वक्त लगा। इससे पहले वे 1994-96 में भी नर्मदा की पैदल परिक्रमा कर चुके हैं। इन सबसे पहले साल 1997 में जब जबलपुर में भूकंप आया था तब भी वो और उनकी टीम ने जो राहत कार्य चलाया था उसकी चर्चा अब भी होती है। इस दौरान उन्होंने कहा था- सेवा अहसान नहीं होती। उनकी टीम ने कोसम घाट को एक तरह से गोद लिया और पूरे गांव का फिर से निर्माण करवाया। इसके बाद प्रहलाद पटेल ने 1999 के उत्तराखंड चमोली के भीषण भूकंप में भी पीडितों की सहायता के लिए कार सेवा की थी। इसके अलावा बालासागर के विस्थापितों के लिए वो उनके भाई जालम सिंह पटेल की टीम ने डेढ़ सौ से ज्यादा अस्थाई घरों का निर्माण करवाया। प्रहलाद पटेल की जीवन का एक पक्ष गौ सेवा भी है। उन्होंने 17 सितंबर 2016 को जरा रुधाम गौ अभयारण्य का निर्माण किया। इस अभयारण्य में बीमार, अपंग और दूध न देने वाली सैकड़ों गायों का संरक्षण किया जा रहा है। इसको चलाने का पूरा खर्च वे और उनके सहयोगी खुद वहन करते हैं।
प्रहलाद पटेल का लंबा राजनैतिक सफर है और वो मप्र के उन चुनिंदा राजनेताओं में से एक है जिनके करियर में कई उतार चढ़ाव आये लेकिन सफर खत्म नहीं हुआ और चलते चलते मंजिले मिलती रही। प्रहलाद पटेल भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता हैं। पार्टी ने उन्हें जिस काम में लगाया उन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ निभाया। प्रहलाद पटेल की राजनीति और उनके बड़े कद के पीछे की वजह उनका संकल्प भी माना जाता है। अमूमन पटेल अपने भाषणों में अपने आध्यात्मिक गुरु श्री श्री बाबा श्री की एक युक्ति का उल्लेख करते हुए कहते है की संकल्प में विकल्प नहीं होता और ये बात पटेल के व्यक्तित्व पर साफ दिखाई देती है। संकल्पित पटेल विकल्प की तलाश में नहीं भटकते और ये बात उनके नशे के खिलाफ अभियान को लेकर सच भी साबित होती है। विशुद्ध शाकाहारी और प्याज-लहसुन से भी परहेज करने वाले पटेल ने दुनिया के किसी भी प्रकार के नशे को अपने जीवन में नहीं आने दिया और जब बात शराब की खिलाफत की आती है तो वो अपनों से लड़ने में भी परहेज नहीं करते। छात्र राजनीति से शराब के खिलाफ आंदोलन करने वाले पटेल आज भी इस मुद्दे पर डटे हुए हैं। प्रदेश और देश में नशा के खिलाफ कई आंदोलन करने वाले पटेल आज जब सत्ता के शीर्ष पर हैं तब भी जब बात शराब की आती है तो मुखर होकर वो उसकी खिलाफत करते हैं।
छात्र जीवन से ही राजनीति के मैदान में उतरने वाले प्रहलाद पटेल ने धर्म और आध्यात्म का साथ नहीं छोड़ा। अपने पुरखों से मिली धार्मिक विरासत के साथ वो कर्मयोगी की तरह धर्म संस्कृति और आध्यात्म को अपनी रग-रग में बसाए हुए हैं। व्यस्तताएं कितनी भी हो लेकिन पूजा-पाठ नहीं छूटता। पटेल रोजाना पूजा-अर्चना करने के साथ गौ सेवा भी करते हैं। अपने पूर्व संसदीय क्षेत्र दमोह के जरारू धाम में एक बड़े गौ अभयारण्य का निर्माण कराया है, जहां बड़ी संख्या में गौ वंश हैं। पटेल गुरु भक्ति का एक बड़ा उदाहरण हैं और एक सफल और समर्पित शिष्य के रूप में भी पटेल को जाना जाता है। मंत्री प्रहलाद पटेल आपदाओं के दौर में पारंगत स्वयंसेवक भी है और आपदा किसी भी तरह की हो उससे निपटना और टीम का नेतृत्व करने की असीम क्षमता के वो धनि व्यक्ति हैं। प्रदेश और देश में कई ऐसे मौके आए जब उनकी सेवा कार्य नजीर बने जबलपुर का भीषण भूकंप इसका बड़ा उदहारण है, जब पटेल ने इस आपदा में कीर्तिमान रचे। बाढ़, सूखा और भूकंप जैसे मौकों पर पटेल की भागीदारी के कई किस्से लोग सुनाते हैं और आज भी जमीन पर नौजवानों की तरह काम करने का माद्दा उनके भीतर दिखाई देता है। मोदी सरकार के स्वच्छता अभियान से पहले ही पटेल इस तरह के अभियानों को अंजाम दे चुके हैं और अब भी जब मौका मिलता है वो एक मजदूर की तरह काम करने से परहेज नहीं करते।
*जल गंगा संवर्धन अभियान*
पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा श्रम मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के सामने प्रदेश के जल स्रोतों के संवर्धन और संरक्षण के लिए शुरू किया गया जल गंगा संवर्धन अभियान चुनौती है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में चलाए जा रहे जल गंगा संवर्धन अभियान में पंचायतों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए उन्होंने मोर्चा संभाल लिया है और आए दिन प्रदेश के किसी न किसी गांव-कस्बे में श्रमदान करते देखे जा रहे हैं। उनका कहना है कि हमारा प्रदेश नदियों की जन्मस्थली है और इनका संरक्षण हमारे साथ आने वाली पीढियों की भी जिम्मेदारी है। उन्होंने आह्वान किया कि छोटी नदियों और उनके जल स्रोतों को बचाने पर ध्यान दें। नदियों के उद्गम स्थलों को संरक्षित करें, तटों पर पौधे लगाएं और वृक्ष बनने तक उनकी देखरेख करें। राज्य सरकार पंचायतों को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने के लिए दृढ संकल्पित है। सभी ग्राम पंचायतों को अपने विकास की योजना स्वयं बनानी चाहिए। इसके लिए सरकार उनके साथ खड़ी है और विकास हेतु आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध करा रही है। पंचायतों को अब सशक्त और अधिकार-संपन्न बनाया जा रहा है। सरपंचों को 25 लाख रुपये तक के वित्तीय अधिकार दिए गए हैं। साथ ही अधोसंरचना विकास के लिए भी पर्याप्त राशि प्रदान की जा रही है। क्लस्टर स्तरीय पंचायतों में 45.50 लाख रुपये और अन्य पंचायतों में 37.50 लाख रुपये की लागत से पंचायत भवनों का निर्माण कराया जा रहा है। सभी ग्राम पंचायतों में चरणबद्ध तरीके से सामुदायिक भवन बनाए जाएंगे। प्रहलाद पटेल का ही सार्थक प्रयास है कि मप्र की पंचायतें आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही हैं।
( लेखक. श्री गीत दीक्षित वरिष्ठ पत्रकार, लेखक , चिंतक, विचारक हैं )