



अमरकंटक।श्रवण उपाध्याय। मां नर्मदा जी की उद्गम स्थली/ पवित्र नगरी अमरकंटक में आज शनिवार को अमरकंटक संत मंडल के तत्वाधान में आदि शंकराचार्य जी की जयंती के पावन उपलक्ष्य में संतों ने नर्मदा जी के दक्षिण तट रामघाट पर वट वृक्ष लगाकर प्रकृति से प्रेम , उनके अद्वैत वेदांत दर्शन और रचनात्मक कार्य स्पष्ट दिखाई देता है । आदि शंकराचार्य एक संत नहीं बल्कि प्रकृति प्रेमी थे । शंकराचार्य जी ने अपनी रचनाओं में बार बार हिमालय , नदियां , पर्वत , वृक्ष , चंद्रमा , सूर्य आदि प्राकृतिक तत्वों का सुंदर और गूढ़ वर्णन किया है । ग्रंथों में उन्होंने प्रकृति को आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत बताया है ।
शंकराचार्य जी ने तपस्थलों के रूप में प्रकृति से भरपूर स्थानों को चुना जैसे केदारनाथ , बद्रीनाथ , श्रृंगेरी आदि । ये स्थान प्रकृति की शुद्धता , साधक को आत्म साक्षात्कार की दिशा में सहायता मिलती है । आदि शंकराचार्य जी के लिए प्रकृति भी ब्रह्म स्वरूप ही था , जिनकी सेवा और आराधना करना ईश्वर की आराधना के समान था । वे प्रकृति को ईश्वर का स्वरूप मानते थे ।
स्वामी नर्मदानंद गिरी जी कहते है कि इसी उद्देश्य अवधारणा को मानते हुए अमरकंटक संत मंडल ने आदि शंकराचार्य जी की पावन जयंती उपलक्ष्य पर आज शनिवार को लगभग ग्यारह बजे नर्मदा जी के दक्षिण तट पर वट वृक्ष रोपित कर संतो ने शंकराचार्य जी की प्रकृति प्रेम को बढ़ाया एवं एक संदेश भी दिया गया कि प्रकृति से प्रेम करना ईश्वर से प्रेम करने के बराबर है । वृक्ष भी पूर्वज समान है , इनका आदर , सत्कार करने से वे भी हमे जीवंत प्रदान करते है । आदि शंकराचार्य प्रकृति प्रेमी थे और उनकी जयंती उपलक्ष्य पर संतों ने प्रकृति से जुड़ते हुए वट वृक्ष लगाकर प्रकृति से प्रेम करने का जन जन को संदेश दिया ।
आज के इस पुनीत कार्य में खास तौर पर स्वामी नर्मदानंद गिरी जी महाराज गीता स्वाध्याय मंदिर , स्वामी लवलीन जी महाराज परमहंस धारकुंडी आश्रम , स्वामी राजेश आजाद झूलेलाल आश्रम , स्वामी सुनील पुरी रुद्रगंगा आश्रम , स्वामी ओंकारानंद गिरी जी , विद्यार्थी अंश तिवारी , विद्यार्थी कान्हा , दिनेश साहू समन्वयक , श्रवण उपाध्याय पत्रकार आदि उपस्थित रहे ।