गाजरघास से होने वाले नुकसानों और इसके प्रबंधन को लेकर किसानों को दी गई जानकारी

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कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा चलाया जा रहा है गाजरघास जागरूकता सप्ताह

शिवपुरी। रंजीत गुप्ता। शिवपुरी जिले में कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन के दौरान कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा 16 से 22 अगस्त तक विभिन्न जागरूकता गतिविधियां आयोजित किया गया। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा रैली, बैठकें और अन्य प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों और ग्रामीणों को गाजरघास से होने वाले दुष्प्रभाव और इसके प्रबंधन के बारे में जागरूक किया जा रहा है। कृषि वैज्ञानिक किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र और ग्रामीण स्तर पर इस खरपतवार के नुकसान के बारे में बता रहे हैं।

किसानों को बताया जा रहा है कि किसान अपने खेतों व अन्य स्थानों के आसपास से इस गाजरघास को किस तरह से नष्ट कर सकते हैं। इसके बारे में प्रदर्शनों के माध्यम से जानकारी दी जा रही है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में गाजरघास को खत्म करने के लिए दवा का छिड़काव भी कराया जा रहा है। शिवपुरी कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ पुनीत कुमार ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के समन्वय से यह गजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन पूरे जिले में किया जा रहा है। इस दौरान विभिन्न गतिविधि आयोजित की जा रही हैं। गाजर घास से क्या नुकसान है, किसान किस तरह से बचाव कर सकता है इसके बारे में जानकारी दी गई।
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एमके भार्गव ने बताया कि गाजरघास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) जिसे आमतौर पर सफेद टोपी, गजरी, चटक चांदनी आदि नामों से जाना जाता है, एक विदेशी आक्रामक खरपतवार है। उन्होंने बताया कि इस जागरूकता सप्ताह के तहत बताया जा रहा है कि इसके फूल आने से पहले इस खरपतवार को उखाड़कर कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट बना लें। गाजरघास को विस्थापित करने के लिए चकोड़ा (पंवार) गेंदा जैसे स्व-स्थायी प्रतिस्पर्धी पौधों की प्रजातियों के बीज का छिड़काव करें।

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