गुरु महिमा और गुरु भक्ति में लीन रहते भक्तगण
अमरकंटक/ श्रवण उपाध्याय। मां नर्मदा जी की उद्गम स्थली / पवित्र नगरी अमरकंटक में संतो , आश्रमों , गुरु स्थलों पर गुरु पूर्णिमा की पावन अवसर पर गुरु पूजन हेतु देश के अनेक जगहों से अपने अपने गुरु पास आना प्रारंभ हो गया । संतो की कुटिया , आश्रमों और गुरु स्थानों पर इसकी रौनक देखी जा सकता है ।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते है । यह दिन भगवान के अवतार तथा महाभारत के रचैता कृष्ण द्वैपायन व्यास का प्राकट्य दिवस है जिन्हे हम सभी वेद व्यास के नाम से जानते है । उन्ही के सम्मान में व्यास पूर्णिमा , गुरु पूजन के नाम से भी जानते है । इस दिन गुरु पूजन का विधान है । गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है । इस दिन से चार महीने तक परिराजक साधु संत एक ही स्थान पर बैठ कर ज्ञान की गंगा बहाते है , जिसे संत चातुर्मास भी कहते है । जैसे सूर्य की ताप से तृप्त भूमि को वर्षा से शीतलता तथा फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है वैसे ही गुरु चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान , शांति , भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है । इसलिए गुरु से ज्ञान प्राप्त करना चाहते है तो अपने ज्ञान का अभिमान करते हुए उनके पास न जाय , उनकी परीक्षा के लिए उनसे प्रश्न पूंछ कर अपनी छुद्रता , अपना छोटापन न दिखाए बल्कि अपनी जिज्ञासा और समस्या के समाधान हेतु सवाल करें । सच्चे प्रमाणित गुरु , गुरु परंपरा में आए हुए गुरु भगवान के करुणा रूप होते है वह हमे देख हमारी स्थिति , हमारा स्तर और हमारी वंशा देख समझ जाते है और हमारे समझ में आने वाली सरल भाषा व उदाहरण देकर हमे समझाते है । संत बताते है भागवत गीता में भगवान कहते है तुम गुरु के पास जाकर सत्य को जानने का प्रयास करो , विनीत होकर जिज्ञासा करो और उनकी सेवा करो । अगर गुरु सेवा चाहिए तो आपको शिष्य बनना होगा । शिष्य को अंग्रेजी में कहते है डिसाइपल यानी जो अपने आप को डिसिप्लिन , अनुशासित करने को तैयार हो वो ही शिष्य है । गुरु से विनीत होकर सुने व विनम्र भाव तथा सेवा और जिज्ञासा द्वारा गुरु से स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करें । जब कोई इस तरह से अपने गुरु की कृपा व सामर्थ पर विश्वास करता है तो उनकी ये भावनाएं गुरु की चुंबक की तरह काम करती है । फिर गुरु की कृपा वर्षा थामने का नाम नही लेती है और आप पा जाते है जीवन का परम सौभाग्य , परम लक्ष्य , परम भक्ति । इसलिए कहते है भगवान की कृपा से गुरु मिलते है और जब गुरु कृपा हो जाय तो भगवान मिल जाते है । यही है गुरु की भक्ति और उनकी महिमा ।
अमरकंटक के मैकल और सतपुड़ा की चोटियों पर अनेक तपस्वी , साधु , संत , गुरुजन विराजमान है । कुटिया , आश्रम , स्थान बना कर अपने भक्ति भाव में लीन है । इन्ही के द्वार पर गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर शिष्यों, भक्तो की अपार गुरु पूजन करने शिष्य पधारेंगे और कई भक्तगण गुरुमंत्र भी लेते है । गुरु स्थानों पर भंडारे का आयोजन भी चलेगा ।