अनूपपुर/ रक्सा और कोलमी – न्यू जोन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रस्तावित 1320 मेगावाट थर्मल पावर प्रोजेक्ट का काम शुरू होते ही इलाके में विरोध के स्वर तेज हो गए हैं। कंपनी भले ही “ग्रामीणों की सहमति और पूर्ण मुआवजा” का दावा कर रही हो, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और बयां कर रही है।
कई ग्रामीणों का आरोप है कि कंपनी और प्रशासन ने मिलकर उन्हें जबरन सहमति दिलवाई। सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुआवजा ही विकास की गारंटी है? जमीन तो एक बार गई तो हमेशा के लिए गई, और आने वाली पीढ़ियाँ अपनी पैतृक धरोहर से हमेशा के लिए वंचित हो जाएंगी। ग्रामीणों का साफ कहना है – “पैसा एक-दो साल चलेगा, लेकिन खेत-खलिहान और खेती की परंपरा सदा के लिए खत्म हो जाएगी।”
कंपनी ने बड़े-बड़े मंचों से कहा है कि स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा। मगर यहाँ के लोग इसे सिर्फ धोखा मानते हैं। उनका कहना है कि “आज तक किसी भी उद्योग ने हमें रोजगार नहीं दिया, सब बाहर से लोग बुलाए जाते हैं। यह प्रोजेक्ट भी सिर्फ दिखावा है।”
थर्मल पावर प्रोजेक्ट से निकलने वाला धुआँ और राख ग्रामीणों के लिए जहर साबित होगा – यही लोगों की सबसे बड़ी चिंता है।
ग्रामीणों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से खेत बंजर होंगे, नदियाँ और तालाब सूखेंगे, भूजल खत्म होगा और गाँव के बच्चे तक बीमारियों की चपेट में आ जाएंगे।“कंपनी कह रही है विकास होगा, लेकिन असल में विकास की आड़ में विनाश बोया जा रहा है।”
ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि कंपनी और सरकार दोनों मिलकर केवल उद्योगपतियों के हित साध रहे हैं। सड़कों, शिक्षा और स्वास्थ्य की बातें सिर्फ दिखावा हैं। लोगों का कहना है –
👉 “पिछले कई उद्योग आए और गए, लेकिन गाँव की हालत नहीं बदली। यह प्रोजेक्ट भी सिर्फ कारपोरेट का पेट भरने आया है, जनता का नहीं।”
ग्रामीणों का कहना है कि वे विकास के खिलाफ नहीं, लेकिन “विकास हमारी जमीन, पर्यावरण और भविष्य की बलि देकर नहीं होना चाहिए।”
उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर कंपनी ने जबरदस्ती निर्माण जारी रखा, तो आंदोलन तेज किया जाएगा और “सड़क से सदन तक” लड़ाई लड़ी जाएगी।
👉 अब बड़ा सवाल यही है – क्या यह प्रोजेक्ट सचमुच आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम है, या फिर अनूपपुर की धरती और ग्रामीणों की जिंदगी को अंधकार में धकेलने की साजिश?