इंदौर बनेगा देपालपुर का स्वच्छता गुरु

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शर्मनाक रैंकिंग के बाद नगर निगम इंदौर उठाएगा जिम्मा, 2 अक्टूबर तक एमओयू साइन होने की तैयारी

इंदौर। संदीप सेन। देश में लगातार नंबर-1 का ताज पहनने वाला इंदौर अब पड़ोसी देपालपुर की किस्मत बदलने निकल पड़ा है। स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 में जब देपालपुर नगर परिषद का नाम 378वीं रैंक पर आया, तो यह केवल देपालपुर ही नहीं बल्कि पूरे जिले के लिए शर्मनाक आंकड़ा था। गली-मोहल्लों से लेकर मुख्य चौक-चौराहों तक फैली गंदगी और कचरे के ढेर बार-बार नगर परिषद की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते रहे। अब तस्वीर बदलने का बीड़ा इंदौर ने उठाया है। इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने स्पष्ट किया है कि शनिवार या 2 अक्टूबर को नगर निगम इंदौर और नगर परिषद देपालपुर के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर होंगे। इसके साथ ही देपालपुर को स्वच्छता की नई राह पर चलाने का औपचारिक ऐलान हो जाएगा।

देपालपुर की हालत क्यों बिगड़ी?

कभी कस्बाई पहचान वाला देपालपुर अब तेजी से बढ़ता नगर बन चुका है। लेकिन बढ़ती आबादी और लापरवाह सफाई व्यवस्था ने इसे गंदगी के ढेर में बदल दिया। नालियों का ओवरफ्लो, कचरा संग्रहण में लापरवाही, डोर-टू-डोर कलेक्शन का कमजोर नेटवर्क और नागरिकों में जागरूकता की कमी ने स्थिति को और खराब कर दिया। यही वजह है कि सर्वेक्षण में देपालपुर की रैंक 378 तक लुढ़क गई।

इंदौर का मॉडल बनेगा मिसाल

इंदौर ने लगातार आठ साल देश का स्वच्छता ताज अपने नाम किया है। यहां का डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण, गीले और सूखे कचरे का वैज्ञानिक निपटान, गारबेज ट्रांसफर स्टेशन, और नागरिक भागीदारी का मॉडल अब पूरे देश के लिए प्रेरणा बन चुका है। यही मॉडल अब देपालपुर में उतारा जाएगा।

इंदौर निगम की टीम देपालपुर में सफाई व्यवस्था का माइक्रो प्लान तैयार करेगी।

सफाई कर्मचारियों को इंदौर की तर्ज पर ट्रेनिंग दी जाएगी।

कचरे का पृथक्करण (Segregation) और प्रसंस्करण (Processing) शुरू होगा।

नागरिकों को जोड़े जाने के लिए अभियान चलाया जाएगा।

जनता की उम्मीदें और आशंकाएँ

देपालपुर के रहवासी वर्षों से गंदगी और अव्यवस्था से परेशान रहे हैं। अब जब इंदौर जैसी सिटी “मेंटॉर” बनने जा रही है तो उम्मीदें आसमान छू रही हैं। लेकिन लोगों के मन में आशंका भी है—क्या यह पहल सिर्फ एमओयू और कागज़ों तक सीमित रहेगी या वाकई सड़कों पर बदलाव दिखेगा? गली मोहल्लों के रहवासियों का कहना है कि कचरा समय पर नहीं उठता, नालियां महीनों तक साफ नहीं होतीं और सफाई कर्मचारियों की संख्या भी कम है। “अगर इंदौर का सिस्टम सच में यहां उतरा तो देपालपुर की तस्वीर जरूर बदलेगी,” स्थानीय लोगों की यह आम प्रतिक्रिया है।

स्वच्छता की जंग — आसान नहीं रास्ता

देपालपुर नगर परिषद के पास संसाधनों की कमी सबसे बड़ी चुनौती है।

सफाई कर्मचारियों की संख्या और उपकरणों की उपलब्धता इंदौर के मुकाबले बहुत कम है।

नागरिकों में जागरूकता की कमी और आदतें बदलना आसान नहीं होगा।

राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक प्रतिबद्धता ही असली परीक्षा होगी।

आने वाले समय में क्या होगा?

एमओयू साइन होने के बाद तीन स्तर पर काम शुरू होगा—

1. तात्कालिक कदम : कचरा कलेक्शन और नालियों की सफाई में सुधार।
2. मध्यकालीन योजना : ट्रांसफर स्टेशन और कचरा प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना।
3. दीर्घकालीन लक्ष्य : नागरिकों को सफाई व्यवस्था से जोड़ना और देपालपुर को टॉप-50 में लाना।

सवालों के घेरे में नगर परिषद

स्वच्छता को लेकर नगर परिषद देपालपुर की जवाबदेही हमेशा सवालों में रही है। कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों पर लापरवाही के आरोप लगते रहे हैं। अब जब इंदौर ने जिम्मेदारी उठाई है तो निगाहें इस पर भी रहेंगी कि देपालपुर परिषद इस सहयोग को कितना गंभीरता से लेती है।

देपालपुर को अब “इंदौर गुरु” मिल चुका है। यह मौका नगर परिषद और नागरिकों दोनों के लिए ऐतिहासिक है। अगर इंदौर का मॉडल यहां सफल होता है तो आने वाले सालों में देपालपुर भी जिले में स्वच्छता की पहचान बन सकता है। मगर सवाल यही है—क्या देपालपुर गंदगी से जंग जीत पाएगा या फिर यह पहल भी कागजों में दबकर रह जाएगी।