सनातन संस्कृति की संवाहक व जननी मां नर्मदा पर हजारो, लाखों श्रद्धालुओं की आस्था बनी हुई है, यह एकमात्र अविरल नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है लाखों की संख्या में भक्त श्रद्धा भाव से मां नर्मदा के दोनों तटों की परिक्रमा करते हैं और ऐसा करते समय वे नर्मदा नदी की बीच जलधारा तक नही जाते, इनके परिक्रमा के अनेक उदाहरण किताबों में मौजूद हैं जिनमें से किसी में भी गुप्त नर्मदा शब्द का उल्लेख नही है, तब आईजीएनटीयू अमरकंटक अपने परिषर में बहने वाले गंदे नाले के एक क्षेत्र विशेष को गुप्त नर्मदा नाम देकर सनातन आस्था पर गहरी चोट करता दिखाई पड़ रहा है, जिसके विरोध में अमरकंटक समेंत हिंदू, साधू संत ने इसका कड़ा विरोध दर्ज कराते हुये भारत सरकार को ज्ञापन के माध्यम से चेताया है।
अनुपपूर। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति द्वारा नर्मदा मैया का घोर अपमान करते हुये धर्म एवं शास्त्र के विरुद्ध नाला / सीवरेज के पानी को गुप्त नर्मदा बताकर राजनीतिक लाभ ले कुलपति जैसे विशेष पद का दुरुपयोग कर रहे है, इस मामले में आज माननीय दिनेश चंद्र अन्तर्राष्ट्रीय संगठन महामंत्री विश्व हिन्दू परिषद से मिलकर इस गंभीर विषय पर चर्चा की गयी जिसपर उन्होने प्रतिक्रिया देते हुये इसे सनातनी आस्था के प्रति कुटाराघात करार दिया, साथ ही अमरकंटक नर्मदा उदगम कुंड के मुख्य पुजारी समेंत विभिन्न साधु-संतो ने इस घटना को गंभीर और सनातन विरोधी बताया है साथ ही साधु समाज ने इस विषय पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुये कहा है कि सनातन आस्था पर किये जा रहे ऐसे कुटाराघात सहन नही किया जायेगा और उन्होने भारत सरकार के प्रधानमंत्री समेंत अन्य मंत्रालयों व महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भेजा है।
धर्मग्रन्थों में गुप्त नर्मदा का नहीं उल्लेख
जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी राजनीतिक फायदा लेने के लिए प्राचीन में एक नाला जिसमें वर्तमान समय पर सीवरेज का पानी रिसाव होकर आ मिलता है उसे गुप्त नर्मदा बताकर राजनीतिक लाभ ले रहे है तथा साधू-संत, सनातन समाज, संस्कृति व सभ्यता का अपमान कर रहे है, कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी के हस्ताक्षर से कुलगीत में गुप्त नर्मदा से अभिसिंचित विश्वविदित गुरुधाम का उल्लेख किया गया है, जबकि किसी भी धर्म ग्रंथों, वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, भगवत गीता सहित अन्य धर्मग्रंथों में गुप्त नर्मदा का उल्लेख नहीं है, स्वामी मायानन्द चैतन्य कृत नर्मदा पंचांग (1915) श्री दयाशंकर दुबे कृत नर्मदा रहस्य (1934), श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी कृत नर्मदा दर्शन (1988) तथा स्वामी ओंकारानन्द गिरि कृत श्रीनर्मदा प्रदक्षिणा, श्री अमृतलाल वेगड द्वारा पूरी नर्मदा की परिक्रमा के बारे में लिखी गई अद्वितीय पुस्तकें ’’सौंदर्य की नदी‘‘ नर्मदा तथा ’’अमृतस्य नर्मदा‘‘इनमें से भी किसी पुस्तक में गुप्त नर्मदा का उल्लेख नहीं है, नर्मदा घाटी में मौजूद चट्टानों की बनावट और शंख तथा सीपों के जीवाश्मों की बडी संख्या में मिलता है, नर्मदा बेसिन का कुल क्षेत्रफल 98496 वर्ग कि0मी0 है यहाँ कहीं भी गुप्त नर्मदा का उल्लेखित नहीं है, ऐसे में राजनीतिक लाभ के लिये गुप्त नर्मदा का उद्गम स्थल बताना व इस पर गीत लिखते हुये सार्वजनिक जगहों पर विशिष्ट अतिथियों से इसका गायन कराना सनातनी आस्था पर गहरी चोट है।
..तो क्या कथित गुप्त-नर्मदा से खंडित परिक्रमा
नाला /सीवरेज के पानी को गुप्त नर्मदा उदगम बताने से वास्तविक नर्मदा परिक्रमावासियों का शास्त्र सम्मत बतााये गये परिक्रमा संबधी नियम खंडित हो रहे हैं, ऐसे में ये परिक्रमावासी पाप के भागीदार बन रहे है क्योंकि इसमें परिक्रमावासी अनूपपुर से अमरकंटक रास्ते जाते हैं ऐसे में गुप्त नर्मदा को लांघने से उन पर पाप आ जाएगा और अब तक की गई परिक्रमा खंडित मानी जायेगी, साथ ही मां नर्मदा की जलधारा के हर कंकर को शंकर माना जाता है, जिसे नर्मदेश्वर शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है ऐसे में सीवरेज के पानी के कंकड़ को कैसे शिवलिंग बनाया जा सकता है इस प्रकार से परिक्रमावासियों के लिए पाप चढ़ाने तथा सनातन धर्म का अपमान करने जैसा यह कृत्य किया गया है।
संबधित विभाग/ वैज्ञानिक प्रमाणन नही, गुप्त नर्मदा घोषित
राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय भारत सरकार के अधीनस्थ कार्य करने वाला शैक्षणिक संस्थान है किसी भी महत्वपूर्ण विषय को घोषित करने से पहले उसका वैज्ञानिक प्रमाण केंद्र सरकार व राज्य सरकार के प्राधिकृत निकायों से अनुमति /अनुमोदन की आवश्यकता होती है, विश्वविद्यालय ने भारत सरकार के किसी भी प्राधिकृत निकाय जैसे केंद्रीय भू-जल सर्वेक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार, जल मंत्रालय मध्यप्रदेश शासन या नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण से से अनुमति /अनुमोदन नहीं कराया है, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष तथा मुख्य सचिव से किसी भी प्रकार का ना तो अनुमति लिया है ना ही किसी केंद्रीय एजेंसी से वैज्ञानिक प्रमाणन कराया गया है, केवल अपने राजनीतिक लाभ के लिए तथा युवा छात्र को धर्म ग्रंथ के प्रति उनकी आस्था को भ्रमित करने के लिए ऐसा कुचक्र रचा गया है जो अपराध की श्रेणी लिये हुये प्रतीत होता है।
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, मुख्यमंत्री को ज्ञापन
ज्ञापन की प्रतिलिपि भारत देश की महामहिम श्रीमती द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति, माननीय श्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री भारत सरकार, माननीय श्री अमित शाह गृह मंत्री, माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री, माननीय श्री भरत सिंह कुशवाह राज्यमंत्री नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, माननीय श्री इकबाल सिंह बेस मुख्यसचिव तथा अध्यक्ष नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण, माननीय श्री आईपीसी केसरी, अपर मुख्य सचिव तथा उपाध्यक्ष नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, माननीय श्री राजीव शर्मा कमिश्नर, शहडोल संभाग, सुश्री सोनिया मीणा जिलाधीश जिला अनूपपुर, पुलिस अधीक्षक अनुपपुर, थाना प्रभारी अमरकंटक सहित कई साधु-संतो को दी गयी है।
सवाल कुछ ऐसे नही आईजीएनटीयू के पास जवाब
खबर प्रकाशन से पूर्व आईजीएनटीयू अमरकंटक व इसके कार्य परिषद के सदस्य से लगातार संपर्क कर इस विषय में उनकी राय जाननी चाही गई तब वे ना नुकुर करते हुये बचते दिखाई दिये, तब उन्हे शोसल मीडिया के माध्यम से कुछ प्रश्र भेजे गये जिन्हे उनके द्वारा पढ़ा तो गया लेकिन जवाब देने में एक बार पुन: ढीले दिखाई दिये, उनसे पूछे गये सवाल में यह लिखा गया कि आईजीएनटीयू भारत सरकार के आधीन एक शैक्षणिक संस्थान है और शिक्षा मंत्रालय की अनुमति तथा नदियों के जल शक्ति मंत्रालय की अनुमति के बगैर गुप्त नर्मदा की घोषणा किस आधार पर की गई साथ ही पूंछा गया कि नाला तथा सीवरेज के पानी रिसाव को गुप्त नर्मदा बताकर राजनीतिक लाभ के पीछे कौन जिम्मेवार है और यह भी पूंछा गया कि जनजाति समाज तथा म.प्र., गुजरात सहित सनातन संस्कृति को मानने वाले लोगों की आराध्य मां नर्मदा के इस घोर अपमान पर कार्यवाही क्यों नही की जा रही इन तमाम सवाल आज भी मुंह बांये खड़े है।
इनका कहना है
इस तरीके के कृत्य धार्मिक आस्थाओं पर प्रहार क रने के लिये किये जाते हैं, वास्तव में गुप्त नर्मदा जैसे शब्द ही नही हैं किन्तु दिग् भ्रमित कर युवा पीढ़ी को गुमराह किया जाता है, इसका सबसे अच्छा तरीका है कि हम अपने बच्चों को वास्तविक चीजें पढऩे को दे और अमरकंटक के साधु संत सहित सभी को इसका पुरजोर विरोध करना चाहिये।
दिनेश चंद्र
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन महामंत्री विश्व हिन्दू परिषद
अमरकंटक का आईजीएनटीयू है न कि आईजीएनटीयू का अमरकंटक, नर्मदा को समझ पाना इनके बस का विषय नही है नदी उसे ही कहा जाता है जिसकी धार अविरल हो, पृथ्वी के नीचे कई जलधारायें हैं उन्हे क्या नाम देंगे ? यह सनातन संस्कृति के साथ गंदा मजाक है, गुप्त नर्मदा नाम की चीज किसी भी धर्मगं्रथ में मौजूद नही है।
धनेश द्ववेदी
नर्मदा उद्गम मंदिर अमरकंटक, मुख्य पुजारी