कैसे होगा अपमान के बखान से आंबेडकर का सम्मान

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

*कैसे होगा अपमान के बखान से आंबेडकर का सम्मान*
अनुराग पाण्डेय,
संविधान निर्माता बाबा साहब आंबेडकर पर श्रद्धा का संग्राम चरम पर है. अंबेडकर यदि जीवित होते तो वह भी यह साबित नहीं कर पाते कि, किस राजनीतिक दल की उनमें ज्यादा श्रद्धा है.
अंबेडकर की श्रद्धा पर संग्राम धक्का मुक्की, खून खराबे तक पहुंच गया है. संविधान निर्माता अगर कहीं से भारतीय संसद और सांसदों के आचरण को देख रहे होंगे तो अपनी रचना की दुर्दशा पर शर्मसार तो होंगे. संसद के गेट पर बीजेपी और कांग्रेस के प्रदर्शन में घायल दो सांसद अस्पताल में भर्ती हैं. सांसद स्पष्टता के साथ आरोप लगा रहे हैं कि, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने उन्हें धक्का दिया है. कांग्रेस की ओर से भी ऐसे ही आरोप लगाए जा रहे हैं कि, भाजपा के सांसदों ने उन्हें लोकसभा में प्रवेश से रोका और धक्का मुक्की की है.
संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में इस काले अध्याय की एफआईआर भी हो चुकी है. इस पर बहुत बहस और चिंता की जरूरत नहीं है कि, धक्का किसने मारा लेकिन, असली धक्का तो भारत के संविधान को लगा है. धोखा तो लोकतंत्र को मिल रहा है. नाम अंबेडकर का लेकर काम निशाचर के हो रहे हैं. कौन दोषी है कौन निर्दोष है यह बड़ा सवाल नहीं है, बड़ा सवाल है कि, भारत में डेमोक्रेसी कुश्ती के अखाड़े में तय होगी?. संसद में संवाद नहीं बल्कि कुश्ती होगी?
सबसे शर्मसार करने वाली बात यह हैकि, संसद में घटित कलंकित करने वाली इस घटना पर कोई शर्मिंदगी नहीं दिख रही है. कोई माफी नहीं दिख रही है. संसद की मर्यादा का चीरहरण हो रहा है चीरहरण करने वाले सीना तानकर संविधान को धोखा देकर भी उसका रक्षक होने का अहंकार प्रदर्शित कर रहे हैं.
राहुल गांधी में अभी भी युवाओं जैसी ताकत है. अगर ताकत की जरूरत होगी तो निश्चित रूप से संसद में राहुल गांधी का प्रदर्शन अच्छा रहेगा. वह स्वयं ही कह रहे हैं कि, धक्का मुक्की से उन्हें कुछ नहीं होता. कड़कडाती ठंड में भी केवल टी-शर्ट पहनना उनके युवापन को ही दिखाता है. लोकसभा अध्यक्ष भी इस घटनाक्रम की जांच कराएँगे. पुलिस भी अपनी कार्यवाई करेगी लेकिन लोकतंत्र को जो ठेस लगी है, संविधान को जो लज्जा मिली है, उसकी तो भरपाई नहीं हो सकती.
बाबा साहब अंबेडकर के अपमान का विवाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा राज्यसभा में संविधान पर हुई बहस में भाषण से उत्पन्न हुआ है. उनके पूरे भाषण को काट-छांटकर एक वीडियो वायरल किया गया. इस वीडियो में ऐसा कहना बताया गया है कि, विपक्ष अंबेडकर-अंबेडकर जितना करता है, अगर उतनी बार भगवान का नाम लेता तो स्वर्ग मिलता. पूरे भाषण का यह वाक्यांश इसलिए बेतुका लग सकता है, क्योंकि पूरे भाषण में अमित शाह ने कांग्रेस की अंबेडकर विरोधी विचारधारा का भंडाफोड़ किया है.
राज्यसभा का भाषण रिकॉर्ड पर होता है. उनका कहना है कि, कांग्रेस अंबेडकर विरोधी है, कांग्रेस संविधान विरोधी है, कांग्रेस आरक्षण विरोधी है. अपनी बातों के समर्थन में अमित शाह ने बहुत सारे तथ्य भी प्रस्तुत किये. भीमराव अंबेडकर को कांग्रेस की सरकार में भारत रत्न नहीं दिया जाना कम से कम उनका सम्मान तो नहीं कहा जाएगा. जबकि कांग्रेस के दो प्रधानमंत्रियों ने अपनी सरकार में ही भारत रत्न ले लिया था.
बाबा साहेब अंबेडकर जब जीवित थे, तब उनका कांग्रेस के साथ वैचारिक मतभेद सार्वजनिक था. यहां तक कि, कांग्रेस ने डॉ. अंबेडकर को दो बार चुनाव भी हराया था. कांग्रेस ने संविधान में बहुत ऐसे संशोधन किये, जिस पर बाबा साहब अंबेडकर खिलाफ थे.
संविधान के ऐसे बहुत सारे पहलू हैं, जिन पर विवाद की स्थितियां हैं, उन पर बाबा साहब के विचार पहले से ही सबको पता हैं. बाबा साहब इस बात के खिलाफ थे, कि धार्मिक पर्सनल लॉ को संविधान में स्थान दिया जाए. लेकिन कांग्रेस के लोगों ने बाबा साहब के विचारों का अपमान करते हुए काम किया. संविधान के समानता के सिद्धांत में समान नागरिक संहिता का विचार बाबा साहब की अवधारणा है लेकिन कांग्रेस उसकी खिलाफत करती रही है. बाबा साहब के विचारों का विरोध उनका अपमान ही कहा जाएगा.
लोकसभा चुनाव में संविधान बदलने के नाम पर चौक चौराहों पर कांग्रेस और उनके सहयोगियों की झांकी से बीजेपी को नुकसान हुआ. इसलिए बीजेपी इस बात से बहुत सतर्क है कि, अंबेडकर, संविधान और आरक्षण पर कोई भ्रम न फैलाया जा सके. राहुल गांधी और कांग्रेस इसी भ्रम और डर को अपनी ताकत बनाने में लगे हैं.
चुनाव में भी भाषण को काट छांटकर ऐसे वीडियो वायरल किए गए थे. इसीलिए राज्यसभा में अमित शाह के भाषण पर विवाद बढ़ते ही न केवल उन्होंने स्पष्टीकरण दिया बल्कि भाजपा के सांसदों ने भी कांग्रेस के प्रदर्शन के मुकाबले में संसद के बाहर प्रदर्शन खड़ा किया. इसी प्रदर्शन के दौरान ही दोनों गठबंधनों में टकराहट हुई और हालात धक्का मुक्की और खून-खराबे तक पहुंच गए.
अगर यह मान भी लिया जाए कि, अमित शाह के भाषण से किसी ने भी अंबेडकर के अपमान का आशय निकाला है तो फिर उनके स्पष्टीकरण के बाद तो यह बात अपने आप समाप्त हो जाती है. इसके साथ ही यह बात भी समझ से परे है कि, अपमान की बात को बार-बार बखान करने से अंबेडकर का सम्मान कैसे होगा?
अगर कांग्रेस और उसके सहयोगी प्रदर्शन में लगातार यह बात कह रहे हैं कि, अंबेडकर का अपमान हुआ है तो उनके इस कथन से अंबेडकर का सम्मान कैसे हो जाएगा? यह भी तो परोक्ष रूप से अंबेडकर के अपमान में भागीदार बन रहे हैं.
कई अपराध ऐसे हैं जो जीवन से जुड़े होते हैं, समाज से जुड़े होते हैं, उनमें पहचान छुपाने की कानूनी अनुमति होती है. रेप के मामलों में अगर महिला की पहचान उजागर कर दी जाए तो फिर रेप का अभिशाप उसे लगातार झेलना पड़ता है. कांग्रेस अपमान का बार-बार बखान कर अंबेडकर के साथ ऐसे ही अभिशाप को जोड़ रही है. दुर्भाग्य यह है कि, कांग्रेस अपने कृत्य को अंबेडकर के सम्मान में देख रही है.

नाम और काम का भी द्वंद है. राहुल गांधी अंबेडकर का नाम अपने साथ जोड़ते हैं तो पीएम मोदी और बीजेपी सरकार अपने काम से अंबेडकर को जोड़ती है. अंबेडकर से जुड़े पंच तीर्थ का विकास बीजेपी ने ही किया है. बी.आर. अंबेडकर के परिवार से जुड़े प्रकाश अंबेडकर के साथ कांग्रेस ने महाराष्ट्र के चुनाव में जैसा राजनीतिक व्यवहार किया, वह भी अंबेडकर के प्रति अनादर ही प्रदर्शित करता है.
बाबा साहब अंबेडकर के संविधान के सबसे बड़े बेनिफिशियरी पीएम मोदी और बीजेपी ही है. अगर कांग्रेस के नायकों को पहले कभी इस बात का एहसास होता कि, संविधान से गरीबों को मिली ताकत से बढ़ी शिक्षा और जागरूकता, भविष्य में उनको सत्ता से उखाड़ फेंकेगी, तो इमरजेंसी जैसे उपाय संशोधन के जरिए पहले ही कर लिए गए होते. अब तो संविधान ही बीजेपी के लिए सबसे बड़ी ताकत है. इसके जरिए ही उन्होंने अपना वैचारिक युद्ध जीता है.
संविधान की बुनियाद पर हमले की बजाय भाजपा की रणनीति उन विचारों को संविधान से हटाने की है, जो बाबा साहब के विचारों के खिलाफ संविधान में सम्मिलित किए गए थे. भारत का संविधान जीवंत है. देश को नए अंबेडकर की तलाश है. जीवन कभी पुनरावृत्ति नहीं करता. अंबेडकर दोबारा पैदा नहीं होंगे बल्कि कोई दूसरा व्यक्ति अंबेडकर जैसा बनकर समानता का इतिहास रच सकता है.
संसद को यह सोचने की जरूरत है कि, आजादी के बाद देश में ऐसे हालात कैसे बन गए कि, अंबेडकर जैसे व्यक्तित्व को उभरने का मौका मिलना बंद हो गया. अंबेडकर के नाम पर सियासत से ज्यादा नेतृत्व क्षमता में अंबेडकर की अनुभूति राष्ट्र की आवश्यकता है.

Leave a Comment

  • Marketing Hack4u