दुनिया को एकात्मता का संदेश दिया आदि गुरु शंकराचार्य ने
खंडवा। मनीष गुप्ता। आदिगुरु शंकराचार्य की तपोभूमि पर तैयार हो रहे एकात्मधाम में प्रस्थानत्रयी शंकरभाष्य पारायण गूंजने लगा है। 32 संन्यासियों के छह समूह प्रतिदिन 12 घंटे इसका पाठ कर रहे हैं। इससे ओंकार पर्वत पर वातावरण भक्तिमय हो गया है। वहीं 108 फीट ऊंची प्रतिमा का निर्माण लगभग पूर्ण हो चुका है। आदिगुरु का मुख मंडल भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और मां नर्मदा को निहारने लगा है। 18 सितंबर को प्रतिमा के अनावरण की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। रात्रि में भी टीम काम में जुटी है।
ओंकार पर्वत स्थित आदिगुरु शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण कार्यक्रम शुरू हो गया है। यह 19 सितंबर तक चलेगा। इस दौरान प्रतिदिन प्रस्थानत्रयी भाष्य पारायण सुबह नौ से शाम सात बजे तक किया जा रहा है। नौ दिनों में 108 घंटे यहां 10 उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता का पाठ होगा। वहीं 15 से 19 सितंबर तक देश के विशिष्ट साधु-संतों द्वारा वैदिक रीति से पूजन तथा 21 कुंडीय हवन किया जाएगा। इसके लिए प्रतिमा के निकट यज्ञशाला बनाई है।
मुख्य आयोजन 18 सितंबर को मांधाता (ओंकार) पर्वत पर सुबह साढ़े 10 दोपहर साढ़े 12 बजे तक होगा। 108 फीट ऊंची एकात्मता की मूर्ति का अनावरण कार्यक्रम सुबह साढ़े 10 बजे से प्रारंभ होगा। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान अनावरण करेंगे। वहीं 19 सितंबर को शाम छह बजे पारायण की पूर्णता और हवन की पूर्णाहुति के साथ आयोजन का समापन होगा।
सनातन धर्म की ‘संजीवनी’है आदिगुरु शंकराचार्य
सनातन धर्म की अलख जगाने वालेआदिगुरु शंकराचार्य, जिन्होंने हिंदू धर्म की सनातन धर्म की संजीवनी कहा जाता है
आदि शंकराचार्य ने संप्रदायों में विखंडित हो चुके सनातन धर्म को संगठित कर मजबूती प्रदान की।
शंकराचार्य ने सनातन धर्म के प्रचार और प्रतिष्ठा के लिए भारत के 4 क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए. उन्होंने अपने नाम वाले इस शंकराचार्य पद पर अपने चार मुख्य शिष्यों को बैठाया. जिसेक बाद इन चारों मठों में शंकराचार्य पद को निभाने की शुरुआत हुई.
देशभर में धर्म और आध्यात्म के प्रसार के लिए 4 दिशाओं में चार मठों की स्थापना की गई. जिनका नाम है ओडिश का गोवर्धन मठ, कर्नाटक का शरदा श्रृंगेरीपीठ, गुजरात का द्वारका पीठ और उत्तराखंड का ज्योतिर्पीठ / जोशीमठ
आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों में सबसे योग्यतम शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरु की थी, जो आज भी प्रचलित है
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मां नर्मदा को रौद्र शांत करने के लिए ओंकारेश्वर में की थी नर्मदाष्टक की रचना
मां नर्मदा के तट और ज्योर्तिलिंग भगवान ओंकारेश्वर के आंगन में मात्र आठ साल की उम्र में आचार्य शंकर ने अपने गुरु गोविंदपादाचार्य से दीक्षा प्राप्त कर वेदांत और उपनिषद की रचना की थी। ओंकारेश्वर में ही उन्होंने मां नर्मदा के रौद्र रूप को शांत करने के लिए ही नर्मदाष्टक रचा था।बताया जाता है कि ओंकारेश्वर आश्रम में गुरु गोविंदपादाचार्य साधनारत थे। तभी मां नर्मदा के रौद्र स्वरूप की वजह से जनजीवन जल प्लवित होने लगा। साधना में लीन गुरु तक नर्मदा का पानी पहुंचने से रोकने के लिए शंकराचार्य ने नर्मदाष्टक की रचना कर मां से शांत होने की स्तुति की थी।कम उम्र में वेदांत और उपनिषद देने वाले केरल के आचार्य शंकर को शंकराचार्य बनाने वाली पवित्र धरा मध्य प्रदेश की है। वे अमरकंटक के रास्ते मध्य प्रदेश पहुंचे थे। उन्होंने यहीं दीक्षा ग्रहण कर संन्यास की राह चुनी थी। आचार्य शंकर ने 16 साल की उम्र में वेदांत दर्शन की व्याख्या कर सहस्त्राधिक रचना रची थीं। देश के चारों कोनों पर चार पीठों की स्थापना करके भारतीयता को एक सूत्र में पिरोया। जिनसे हमारी सनातनी संस्कृति का प्रवाह अविरल हो रहा है।इस धन्य भूमि पर उनकी स्मृतियों को अक्षुण्य और चिरस्थाई रखने की मंशा से प्रदेश सरकार द्वारा उनकी 108 फीट ऊंची प्रतिमा, संग्रहालय और एक अंतरराष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान का निर्माण शंकराचार्य प्रकल्प अंतर्गत किया है।