छात्रों के भविष्य पर सवाल
उमरिया। अनिल साहू। केंद्रीय विद्यालय निर्माण की प्रस्तावित भूमि में फारेस्ट बेवजह अड़ंगा लगा रहा है,जिससे केंद्रीय विद्यालय में अध्ययनरत मासूम छात्रों का भविष्य प्रभावित हो रहा है।दरअसल वर्ष 2013 में केंद्रीय विद्यालय के लिए वन विकास निगम के बगल में मौजूद बरतिया तालाब के बगल से करींब 6 एकड़ भूमि आवंटित की गई थी,बताया जाता है कि करींब दस वर्षों बाद यानी वर्तमान में वर्ष 2023 में जब उक्त भूमि पर निर्माण एजेंसी सीपीडब्ल्यूडी ने करींब 17 करोड़ की लागत से कार्य प्रारंभ करने की तैयारी की तो वन विभाग ने अड़ंगा लगा दिया और कहा कि उक्त भूमि हमारे कब्जे में है और हमारे दस्तावेज में उल्लेखित है।सवाल इस बात का है कि वर्ष 2013 में जब केंद्रीय विद्यालय के लिए भूमि आवंटित की गई थी तो क्या वन विभाग से अभिमत नही लिया गया था,और अगर लिया गया था,तो वर्तमान में फारेस्ट क्यों अड़ंगा लगा रहा। सूत्रों की माने तो इस पूरे मामले में फारेस्ट की बड़ी चूक सामने आई है।दरअसल वर्ष 2013 में आवंटित भूमि को वन विभाग ने अपने नक्शे में उल्लेखित नही किया था,जिस वजह से वर्तमान में वन अधिकारी इस अतिसंवेदनशील मामले में अड़ंगा लगा रहे है।विदित हो कि मुख्यालय स्थित केंद्रीय विद्यालय जिस स्थल पर संचालित है,भवन के अभाव में महज 10 वी तक ही संचालित है, दसवीं के बाद छात्र दूसरे शहर में जाकर शैक्षिक कार्य पूर्ण कर रहे है,इसके अलावा वर्तमान में जर्जर भवन होने की वजह से जंगली जीव जंतु एवम भवन के गिरने का छात्रों पर खतरा भी बना है,बावजूद इसके जिला प्रशासन और वन विभाग के समन्वय की कमी केंद्रीय विद्यालय के नवीन भवन पर भारी पड़ रहा है।
बच्चों की शिक्षा और उनके भविष्य से जुड़े इस अतिसंवेदनशील मामले में तत्कालीन कलेक्टर वर्ष 2013 में भूमि आवंटन के सम्बंध में वन विभाग को पत्र जारी किया था,जिसमे उक्त प्रस्तावित भूमि को लेकर फारेस्ट से अभिमत मांगा था,परन्तु वन विभाग ने गम्भीरता नही बरती, बाद में उस पत्र का जवाब 10 वर्षों बाद यानी वर्तमान में वर्ष 2023 के जुलाई माह में दिया,इस मामले में भी बच्चों की शिक्षा के प्रति वन विभाग ने बड़ी लापरवाही का परिचय दिया,आवंटित भूमि को लेकर समय पर फारेस्ट अपना अभिमत देता तो शायद कोई और रास्ता बनाया जा सकता था।उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 में मप्र शासन मुख्य सचिव राजस्व एवम वन के संयुक्त आदेश से वन एवम राजस्व भूमि के सीमांकन का आदेश दिया था।जिसमे संयुक्त सर्वे में रिपोर्ट भूअभिलेख आयुक्त ग्वालियर को सौंपा गया था,प्रकाशित राजपत्र 1972 के संदर्भ में आयुक्त भूअभिलेख ग्वालियर ने आवंटित भूमि को वर्ष 2005 में उक्त आवंटित भूमि को राजस्व भूमि घोषित किया गया था। *दुर्भाग्य है कि फारेस्ट द्वारा लगाया गया अड़ंगा यथावत रहा या कोई निराकरण नही हुआ तो केंद्रीय विद्यालय के नवीन भवन के निर्माण की 17 करोड़ की रकम वापस हो जायेगी, टेंडर कैंसल हो जायेगा और छात्रों के भविष्य के साथ केंद्रीय विद्यालय का निर्माण अधर में लटक जाएगा। ज़रूरी है कि ऐसे मामलों में बेहतर सामंजस्य एवम समन्वय बनाया जाए और बच्चों के शिक्षा के दृष्टिगत बेहतर कदम उठाया जाए।