जिले में नही है एक भी कृषि वैज्ञानिक
लगातार बढ़ रहे उत्पादन में धड़ल्ले से हो रहा कीटनाशक का उपयोग
अनूपपुर। खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए लगातार प्रदेश सरकार घोषणा करते आ रही है मगर जमीनी हकीकत में जिले की जनपदों में मृदा परीक्षण केंद्र अभी तक चालू नहीं हुए हैं ऐसे में हर साल कृषि विभाग आंकड़े जारी कर रकबा बढ़ने की बात जरूर कहता है लेकिन उन्नत और आधुनिक खेती हो इसके लिए मृदा परीक्षण जरूरी है मगर जिले में मात्र अनूपपुर जनपद की मृदा परीक्षण केंद्र मुख्यालय में संचालित है जिस में भी उधार के कर्मी अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
अनूपपुर जिले का जब से गठन हुआ है लगातार कृषि का रकबा सुधारने के आंकड़े कृषि विभाग जारी करता आया है इसी का नतीजा है कि अभी जिले में लगभग एक लाख से भी अधिक किसान खेती में जुड़कर अपनी जीविकोपार्जन कर रहे हैं मगर वहीं दूसरी तरफ बिना मृदा परीक्षण के भला प्रदेश सरकार किसानों को कैसे खेती को लाभ का धंधा बना पाएगी, जबकि आधुनिक खेती में वैज्ञानिकों की जरूरत होती है ताकि मिट्टी के आधार पर खेती का रकबा सुधार कर अधिक से अधिक फसल उसमें ली जा सके साथ ही किस मात्रा में फसल को कीटनाशक दवा की जरूरत है उसकी भी उचित मात्रा बताने वाला जिले में कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति मौजूद नहीं है।
तो कैसे बनेगी खेती लाभ का धंधा
अनूपपुर जिले की चारों जनपदों में मृदा परीक्षण केंद्र का निर्माण कार्य चल रहा है वही कार्यालय संचालन के लिए पहले से ही रखी हुई मशीनें भी खराब हो चली हैं लाभ का धंधा बनाने के लिए खेती को वैज्ञानिक पद्धति की जरूरत है मगर अनूपपुर जिले में कोई भी वैज्ञानिक कृषि विभाग में कार्यरत नहीं है इतना ही नहीं मृदा परीक्षण केंद्र भी अधूरे हैं जिसके चलते अंतिम छोर के व्यक्ति को अमरकंटक के पास पोडकी में संचालित इंडियन काउंसिल आफ रिसर्च में संपर्क साधना पड़ता है मगर उसमें भी समय पर चीजे उपलब्ध नहीं हो पाती है।
मैदानी अमला न के बराबर
कृषि को लेकर प्रदेश सरकार के द्वारा घोसणा को लेकर वाहवाही लूटी जाती है उसमें उत्पादन को आंकड़ों के आधार पर बढ़ा चढ़ाकर दिखाने का काम कृषि विभाग कर रहा है जबकि मैदानी अमला न के बराबर है मूलभूत जैसी सुविधा भी किसान को आसानी से उपलब्ध नहीं है।
सवा लाख किसान के लिए 1 परीक्षण केन्द्र
अनूपपुर जिले के लगभग 1लाख 31हजार किसानों का मिट्टी परीक्षण मुख्यालय में मौजूद मंडी कार्यालय में परीक्षण होने के लिए पहुंचता है हालांकि इसमें कोई शुल्क तो विभाग नहीं लेता है मगर परीक्षण में काफी समय जरूर लग रहा है इतना ही नहीं वैज्ञानिक पद्धति न होने के चलते किसान आज भी उन्नत खेती करने के लिए सोच रहा है इसका नुकसान यह हो रहा है कि अपनी सूझबूझ से किसान जरूरत से ज्यादा कीटनाशक का उपयोग फसल की बेहतरी के लिया कर रहा है जिसका नुकसान सीधे तौर पर आम आदमी के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। मगर ध्यान देने वाले विभाग समेत सरकार भी इस मामले में अनदेखी करती आ रही है।
बिना कृषि सुधार के बढ़ रहा रकवा
अकेले अनूपपुर जिले में वर्ष 2023_ 24 में लगभग 33410 रकवा पहुंच चुका है जिसमें जिले के लगभग 130505 किसान खेती कर रहे हैं वहीं वर्ष 2023 में किसानों की संख्या में किसानों की संख्या में दशमलव 5% की वृद्धि जरूर दर्ज की गई है इस सुधार के नाम पर अनूपपुर जिले के किसान अनाज से लेकर तिलहन ,दलहन उगाते आ रहे हैं।
प्रदेश सरकार भी नही चिंतित
जानकारी के अनुसार अकेले मध्यप्रदेश में लगभग 70 प्रयोगशालाओं का संचालन हो रहा है जिसमें 24 कृषि विभाग संचालित कर रहा है तो वही 26 मंडी बोर्ड के माध्यम से संचालित की जा रही हैं शेष अन्य प्रयोगशाला कृषि विद्यालय व कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से संचालित हो रहे हैं ऐसे में हर जिले में मृदा परीक्षण आसानी से उपलब्ध हो पाए इस पर सरकार भी चिंतित नजर नहीं आती है।
प्रयोगशाला में भी उधार के कर्मी
यह बात जरूर सही है कि वर्ष 2015 में मंडी बोर्ड के तहत संचालित अनूपपुर जिले की मृदा परीक्षण केंद्र को कृषि विभाग के सुपुर्द कर दिया गया था लेकिन जिस जगह पर कार्यालय व मृदा परीक्षण केंद्र संचालित है वह अभी भी मंडी बोर्ड की जमीन है इतना ही नहीं प्रयोगशाला में काम कर रहे हैं प्रभारी व उसके सहायक के 2 पद स्वीकृत हैं जिनका वेतनमान आज भी मंडी बोर्ड से दिया जा रहा है इतना ही नहीं मंडी बोर्ड के कर्मी आज भी वर्ष 2010 से लगातार संविदा में ही काम करते चले आ रहे हैं। ऐसा में यह कहना गलत नहीं होगा कि उधार की प्रयोगशाला से कृषि विभाग अपने लिए उन्नत खेती करने की बात कह रहा है।
कर्मचारियों का पता नहीं बन रहे नए केन्द्र
अनूपपुर जिले में कोई भी साइंटिस्ट कृषि विभाग में नहीं है। वही
जिले में 3 जनपदों में कोतमा, पुष्पराजगढ़, जैतहरी में भवन का काम चल रहा है। जिसमें अभी भी कोई कर्मी अपनी सेवाएं नहीं दे पा रहा है या फिर यूं कहें सरकार के द्वारा अभी तक इसमें कोई भर्तियां नहीं की गई हैं।
मृदा परीक्षण की मशीनें फॉक रही धूल
जिन जनपदों पर मृदा परीक्षण केंद्र के भवन बन रहे हैं वहां पर पहले से ही मशीनें धूल फॉक रही है जिसके चलते मशीनें आपने आप खराब हो चली है या फिर यूं कहें कि नए भवन बनने के साथ ही इनमें फिर से दोबारा लाखों रुपए की लागत से मशीनों को लगाया जाएगा लेकिन पुरानी मशीनों का उपयोग कितना होगा यह सोचने वाली बात है वहीं दूसरी तरफ इस तरह की खरीदारी से कहीं ना कहीं टैक्स के पैसों में चपत लगाने का काम विभाग करता रहा है।
स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा प्रतिकूल प्रभाव
आमतौर पर खाने पीने की चीजों से ही अधिकतर बीमारियों शरीर में घर कर जाती हैं आदमी कहता जरूर है कि मौजूदा समय में कोई भी सामान शुद्ध नहीं बचा है उसका नतीजा कहीं न कहीं खेती से जरूर निकल कर आता है ऐसे में अगर प्रत्येक जिले में कृषि वैज्ञानिक मौजूद होते हैं तो उसका सीधा लाभ किसान और उसकी जमीन में उगने वाली फसल को मिलेगा ताकि अच्छी फसल कम कीटनाशक के उपयोग के साथ इस्तेमाल की जाएगी जिससे तैयार हो रही फसल भी काफी हद तक साफ-सुथरी होगी। जिससे स्वास्थ्य पर भी इसका असर उचित होगा मगर इतना गंभीर मामला है कि सरकार इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है।
